26 August 2020

WISDOM ----

   एक  बार  एक  व्यक्ति  ने  अपना  सर्वस्व  परोपकार  में  लगाकर  संन्यास  ग्रहण  किया  l  वह  सभी  प्रकार  से  ईश्वर  के  लिए  समर्पित  हो  गया  l   उसके  समर्पण  के  कारण  भगवान  को   उसके  योग  व  क्षेम  का  भार  उठाने  के  लिए  सहर्ष  ही  बाध्य  होना  पड़ा  l   उसके  लिए  नित्य  प्रति  एक  देवदूत  एक  थाली  में  सुस्वादु  भोजन  लाता   और  उसे  करा  कर  लौट  जाता  l  यह  देख  एक  अन्य  व्यक्ति  ने  भी  अपना  सब  कारोबार  लड़कों  को  सौंपकर  , गेरुए   वस्त्र  पहन  कर  उस  स्थान  पर  तप  करने  लगा  l   अब  देवदूत  दो  थालियाँ   लगाकर  लाया  --  एक  में  सूखी   रोटी  थी   तो  दूसरे  में  स्वादिष्ट  भोजन  l    दूसरे  व्यक्ति  ने  अपनी  थाली  में   सूखी   रोटी  देख   देवदूत  से  प्रश्न  किया  --- ' मुझे  ही  सूखी   रोटी  क्यों  मिल  रही  है  ? '  देवदूत  ने  उत्तर  दिया --- " इस  थाली  में  भोजन  व्यक्ति  के  संचित  पुण्य  के  अनुसार  ही  मिलता  है  l   उस  व्यक्ति  ने   अपना  जीवन  परोपकार  में  लगा  दिया   और  उसके  उपरांत   उसकी  ईश्वर  शरणागति  के  पुण्य  के  रूप  में   उसका  जीवन  भगवान  की  धरोहर   हो  गया  , इसलिए  उसे  सुस्वादु  भोजन  मिलता  है  l   जबकि  आपने  जीवन  में  मात्र  एक  बार  एक  व्यक्ति  को  अहंकार  से  भरकर   सूखी   रोटी  दी  थी  ,  वही   सूखी    रोटी   आज  आपकी  थाली  में   आपके  लिए  लौटकर  आई  है  l   अब  आपकी  सूखी   रोटी  भी  समाप्त  होने  को  है  ,  कल  से  आपको  कुछ  नहीं  मिलेगा  l  "  अब  उस  व्यक्ति  की  चेतना  जाग्रत  हुई  ,  उसने  अपनी  वह  सूखी   रोटी  भी  दान  में   दे  दी   और  स्वयं  भूखा  रहा  l   इसके  बाद  उसने  परोपकार  के  कार्य  किये   फिर  वह  भी  प्रभु  की  कृपा  का   अधिकारी बना  l  

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