इस संसार में अनेक लोग ऐसे हैं जो अपने अधिकारी , अमीरों और शक्ति संपन्न लोगों की खुशामद किया करते हैं ताकि कम समय और कम परिश्रम में उन्हें अधिक लाभ मिल जाये लेकिन जो कर्मयोगी हैं , ईश्वर विश्वासी हैं , उनके लिए ' परमात्मा पर्याप्त है l ' पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' जिनके पास सब कुछ है , सारा ऐश्वर्य है , ईश्वर के बिना वे दरिद्र दिखाई देते हैं l ऐसे संपत्तिशाली भी मिले , जिनके पास कुछ भी नहीं है , केवल परमात्मा है l '
एक पुरानी कथा है ---- किसी चारण ने एक सम्राट की बहुत तारीफ की l उसकी स्तुति में अनेक सुन्दर गीत गाये l यह सब उसने कुछ पाने की लालसा से किया l उसकी प्रशंसाओं से सम्राट हँसता रहा फिर उसने स्तुतिगान करने वाले उस चारण को सोने की बहुत सी मुहरें भेंट की l उस चारण ने जब इन मुहरों पर निगाह डाली तो उसके अंदर कुछ कौंध गया l उसने आकाश की और कृतज्ञता भरी नज़रों से देखा l उन मुहरों को देखकर उसमें न जाने कैसी क्रांति हो गई , अब वह चारण न रहा , संत बन गया l बहुत वर्षों बाद किसी ने उससे पूछा --- 'ऐसा क्या था उन मुहरों में ? ' वह हँसा और बोलै --- मुहरें नहीं , वह वाक्य जादुई था , जो उसमे लिखा था l उस पर लिखा था ---- 'जीवन की सभी आवश्यकताओं के लिए परमात्मा पर्याप्त है l '
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