भगवान बुद्ध पहले ऐसे महायोगी थे , जिनके भिक्षुओं में राजकुमारों एवं राजाओं की संख्या बहुलता से थी l उन्होंने इन सबको पार्थिव ऐश्वर्य से एक बड़े ऐश्वर्य के दर्शन कराये थे l बड़ी चीज मिल जाने पर छोटी चीज छूट जाती है l
जीवन भर भटके हुए लोगों को सन्मार्ग दिखाने वाले भगवान बुद्ध मृत्युशैया पर थे l सुभद्र नामक परिव्राजक ने जब सुना कि बुद्ध जैसे महापुरुष का अवसान होने जा रहा है और मैंने अपने अहंकार के कारण आज तक अपनी शंकाओं का निवारण नहीं किया l ऐसा अवसर , ऐसे महापुरुष का अवतरण अब कब होगा l वह शालिवन पहुंचा और आनंद से कहा ---- " मेरे हृदय में धर्म संबंधी शंकाएं हैं , यदि अब न मिटीं तो कभी नहीं मिट सकेंगी l " आनंद ने कहा ---- " वे निर्वाणशैया पर हैं , अब उन्हें कष्ट मत दो l " इस पर सुभद्र ने कहा ---- " अच्छा मुझे दर्शन कर लेने दो l " आनंद ने मना कर दिया l संवाद बुद्ध के कानों तक पहुंचा l करुणानिधान भगवान बुद्ध बोले --- " आनंद सुभद्र को मत रोको , आने दो , वह ज्ञान प्राप्ति के लिए आया है l l " सुभद्र ने पहली बार उनके दर्शन किये और कहा --- " भंते ! मैं धर्मसंघ की शरण में आना चाहता हूँ , आप आज्ञा दें ल मुझे भिक्षु बना लें l " बुद्ध ने आनंद से कहा --- " इसे अभी प्रव्रज्या में दीक्षित करो l ' और उसे अंतिम उपदेश दिया l सुभद्र भगवान बुद्ध का अंतिम शिष्य था l मृत्यु निकट है , यह जानकर भी जो परोपकार से मुख न मोड़े , वही सच्चा , आत्मज्ञानी महापुरुष है l
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