सद्बुद्धि से अभिप्राय है --- दूरदर्शी विवेकशीलता l बुद्धि तो सभी मनुष्यों के पास होती है , पर यदि मनुष्य सद्बुद्धि संपन्न हो तो वह अपना निज का कल्याण करने के साथ - साथ समाज को भी अपनी विभूतियों से लाभान्वित करता है l भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में इस सद्बुद्धि को ही बुद्धिमानों की विभूति और अपना स्वरुप बताया है l गायत्री उपासना का सर्वोपरि लाभ सद्बुद्धि के जाग्रत होने के रूप में ही साधक को मिलता है l गायत्री उपासना का प्रत्यक्ष उपहार --- सद्बुद्धि है l सद्बुद्धि जाग्रत होने पर व्यक्ति श्रेष्ठ का चयन करता है l
कहते हैं जिस प्रकार ग्वाला लाठी लेकर पशुओं की रक्षा करता है , उस तरह देवता किसी की रक्षा नहीं करते l वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं , उसकी बुद्धि को सन्मार्ग पर नियोजित कर देते हैं l जब व्यक्ति सद्बुद्धि से , विवेक से कार्य करता है तो उसका परिणाम भी शुभ होता है l इसीलिए चाणक्य ने भी भगवान से प्रार्थना की कि भले ही मेरा सब कुछ चला जाये पर सद्बुद्धि बनी रहे l
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