15 August 2020

WISDOM ----- ' ईश्वर बंद नहीं है मठ में , वह तो व्याप रहा घट - घट में '----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

   स्वामी  विवेकानंद  के  जीवन   की घटना  है ---  बात   1899  की  है  , जब  स्वामी  विवेकानंद   राजस्थान   में  माउंट  आबू  में   नक्की  झील  के  किनारे  एक  गुफा  में  ठहरे  थे  l  एक  मुसलमान   वकील  के  आग्रह  पर   वे  उसके  घर  पर  रहने   को  चले  गए  l   कुछ  समय  बाद  उस  वकील  ने   महाराजा  खेतड़ी  के   व्यक्तिगत  सचिव   मुंशी  जगमोहन  लाल  को  स्वामी जी  से  मिलने   के  लिए    आमंत्रित  किया  l   जब  मुंशी  जी  ने    स्वामी जी  से    उनके  एक  मुसलमान   के  घर  ठहरने  के  औचित्य  पर  प्रश्न  किया  ,  क्योंकि  वहां  रहने  पर   मुसलमान   द्वारा   उनके  भोजन  का  स्पर्श  होना  स्वाभाविक  था  ,   तब  स्वामी जी  ने  कहा ---- " महाशय  ! आप  क्या  कहते  हैं  ?  मैं  एक     अछूत  के  साथ  भी  भोजन  कर  सकता  हूँ   l   मैं  सर्वत्र  ब्रह्म  के  दर्शन  करता  हूँ  ,  क्षुद्रतम    जीव   में  भी    मैं  ब्रह्म   को   देखता हूँ   और  फिर   सभी  उपासनाओं   का  सार   भी  तो  यही  है   कि   हम  पावन , पुनीत ,  पवित्र , निर्मल ,  निश्छल  , निष्कपट   और  निर्दोष  बनें  l  "    वास्तव   में  एक  ब्रह्मनिष्ठ  व्यक्ति  की  दृष्टि  में   जाति , पंथ ,  मजहब  की  सारी    दीवारें ढह  जाती  हैं   हैं  और   सर्वत्र   उसे ब्रह्म  का  ही  अस्तित्व  दीख  पड़ता  है   l      जब  स्वामी  विवेकानंद  , नरेंद्र  रूप  में  पहली  बार   दक्षिणेश्वर  काली  मंदिर  में   श्री रामकृष्ण परमहंस   से  मिलने  आये  थे  ,  तब   उनके बारे  में   परमहंस जी  ने  कहा  था  ---- " नरेंद्र  ने  पश्चिमी  द्वार  से  कमरे  में  प्रवेश  किया   l   न  तो  वेशभूषा  या  शरीर  की   ओर   उसका  ध्यान  था   और  न  ही  संसार  के  प्रति  आकर्षण ---- कलकत्ते  के  भौतिकवादी  वातावरण  में    इस प्रकार   आध्यात्मिक  चेतना  संपन्न  व्यक्ति  के  आगमन  से   मैं  चकित  रह  गया  l  "   स्वामीजी   की  कविता  की  पंक्ति  है ---- ' बहु  रूपों  में  खड़े  तुम्हारे  आगे  ,  और  कहाँ  हैं  ईश  ?----- 

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