पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ----' पाप , पतन , अनीति का मार्ग शीघ्र सफलता का स्वप्न जरूर दिखाता है , परन्तु पहुंचता कहीं भी नहीं है l हमारी चाहतें अति शीघ्र पूरी हो जाएँ , इस लालच में लोग धर्म और सदाचार का पथ छोड़कर अपूर्ण महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए निकल पड़ते हैं , परन्तु वो पथ मात्र कीचड़ भरे दलदल में पहुँचाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करता l धर्म का पथ समय साध्य हो या कर्तव्यों से परिपूर्ण --- यह जीवन का राजमार्ग है l उस पर चलते हुए जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करना ही श्रेयस्कर है l ' आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' जीवन में सुख आये या दुःख , इस राजमार्ग को छोड़ने की भूल हमें कभी नहीं करनी चाहिए , क्योंकि अंतत: गंतव्य तक पहुँचाने का कार्य मात्र राजपथ ही करता है l
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