संत तुकाराम ने सेवा धर्म को भी ईश्वर भक्ति माना l उन्होंने सबसे पहले पूर्वजों द्वारा स्थापित बिट्ठल मंदिर का जीर्णोद्धार कराया l तुकाराम के पास धन तो था नहीं , उन्होंने श्रमदान के द्वारा इस कार्य को पूर्ण किया और इसी को भगवान की कायिक सेवा मान लिया l इसके लिए तुकाराम ने स्वयं पहाड़ से पत्थर लाकर एकत्र किए , मिटटी भिगोकर गारा तैयार किया और फिर उसकी दीवार बनाई l यह सब कार्य उन्होंने अपना पसीना बहाकर किया l अपने इस उदाहरण से उन्होंने यह सन्देश दिया कि केवल कीर्तन और नाम जप ही भगवान की भक्ति के चिन्ह नहीं हैं , वरन किसी प्रकार की प्रत्यक्ष सेवा भगवद् भक्ति का ही दूसरा रूप है l
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