23 August 2020

WISDOM -----

  अनावृष्टि  से  संकटग्रस्त  जनता  की  सहायता  के  लिए   छत्रपति  शिवाजी   एक  बाँध  बनवा  रहे   थे  l  मजदूरी  करके  सहस्त्रों  व्यक्तियों  के  भरण - पोषण  की  व्यवस्था  हो  रही  थी  l  छत्रपति  शिवाजी  ने  एक  दिन  यह  देखा   तो  गर्व  से  फूले   न  समाये   कि   वे  ही  इतने  लोगों   को  आजीविका  दे  रहे  हैं  l   यदि  वे  ये  प्रयास  न  करते   तो  उतने  लोगों  को  भूखे  मरना  पड़ता   l    समर्थ  गुरु  रामदास  उधर  से  निकले   l   शिवाजी   ने  उनका  सम्मान - सत्कार  किया   और  अपने  उदार - अनुदान  की  गाथा  कह  सुनाई  l    समर्थ  गुरु  उस  दिन  तो  चुप  हो  गए  ,  पर  जब  दूसरे  दिन  चलने  लगे   तो  शांत  भाव  से   एक  पत्थर  की  ओर   संकेत  कर  के   शिवाजी  से  कहा --- ' इस  पत्थर  को  तुड़वा  दो  l  '   पत्थर  तोडा  गया   तो  उसके  बीच  एक   गड्ढा  निकला  ,  उसमें  पानी  भरा  था  l  एक  मेढ़की  कल्लोल  कर  रही  थी  l   समर्थ  गुरु  रामदास  ने   शिवाजी   से  पूछा  --- " इस  मेढ़की  के  लिए   संभवत:  तुमने  ही  पत्थर  के  भीतर    यह  जीवन  रक्षा   की  व्यवस्था  की  होगी  ? "  शिवाजी  का  अहंकार  चूर - चूर  हो  गया   , वे  समर्थ  के  चरणों  में  गिर  पड़े  l   समर्थ  गुरु  रामदास  ने  उन्हें   अपनी  भूमिका  का  बोध  कराया   और  आततायियों  से  संघर्ष  हेतु   नीति   बनाने  के  लिए  बाध्य  किया  l   समर्थ  गुरु  का  मार्गदर्शन  एवं   कृपा  ही  थी   जिसने  शिवाजी  को  समय - समय  पर   सही  सूत्र  देकर   आपत्ति  से  बचाया   व  श्रेयपथ  पर  अग्रसर  किया  l 

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