श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ---- " जैसे जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती है , वैसे ही विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों में से मन जिस इन्द्रिय के साथ रहता है , वह एक ही इन्द्रिय इस पुरुष की बुद्धि को हर लेती है l "
जब इंद्रिय व मन मिल जाते हैं तो उनका पक्ष प्रबल हो जाता है , तब अकेली रह जाने के कारण बुद्धि अपना काम नहीं कर पाती , और बुद्धि कुबुद्धि बनकर अनर्थकारिणी बन जाती है l एक विचारक का कथन है --- " जो मनुष्य अधिकतम संतोष और सुख पाना चाहते हैं , उनको अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखना चाहिए l आर्थिक दृष्टि से मनोनिग्रह और संयम का मूल्य लाखों - करोड़ों रूपये से भी अधिक है l जो मनुष्य अपना स्वामी है और इंद्रियों को इच्छानुसार चलाता है , वासना से नहीं हारता है , आर्थिक दृष्टि से सुखी रहता है l प्रलोभन एक तेज आंधी के समान है , जो मजबूत चरित्र को भी , यदि वह सतर्क न रहे , गिराने की शक्ति रखता है l जो जागरूक है , वही संसार के नाना प्रलोभनों - आकर्षणों और मिथ्यादंभ से मुक्त रह सकता है l
No comments:
Post a Comment