गुरु नानक प्रव्रज्या पर थे l मुखमण्डल का तेज छिपाने के लिए उनने चेहरा ढँक लिया एवं कुछ फटे - पुराने कपड़े पहन लिए l सिपाहियों ने उन्हें बेगार में पकड़कर सेनापति के सम्मुख प्रस्तुत किया l वह उनका तेज देखकर उन्हें बाबर के पास ले गया l बाबर समझ गया कि यह खुदापरस्त फकीर है l कहीं कोई बददुआ न दे दे , यह सोचकर वह उठा और आदरपूर्वक उन्हें गद्दी दी l शाही सम्मान की रीति से उन्हें शराब परोसी गई l नानक देव बोले --- " बाबर ! हमने वह आला शराब पी है , जिसका नशा जन्म - जन्मांतर तक नहीं उतरता l " बाबर ने शर्मिंदा होकर हीरे - जवाहरात जड़े कपड़े मंगवाए l गुरु नानक ने कहा ---' इन्हे तू गरीबों में बंटवा दे , जिनका धन चूस - चूसकर तू सम्राट बना है l मेरे पास तो भगवान के नाम का धन है l सारी दौलत मिटटी है l " बाबर ने कहा --- ' मैं आपकी सेवा कैसे करूँ ? ' इस पर नानक देव ने कहा --- " तेरे यहाँ जितने कैदी हैं , उन्हें छोड़ दे और लूटपाट बंद करवा दे --- यही हमारी सबसे बड़ी सेवा है l ' बाबर ने तुरंत आदेश दिया l
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