ईश्वर हमें बिना मांगे ही बहुत कुछ देते हैं , लेकिन यदि हम जागरूक नहीं हैं , विवेक नहीं है तो ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , लालच , छल - कपट जैसे दुर्गुणों के कारण हम ईश्वर की देन का सदुपयोग नहीं कर पाएंगे l एक कथा है ---- एक बार पार्वती जी और शंकर जी धरती पर भ्रमण को निकले l उन्होंने देखा कि उनका एक ब्राह्मण भक्त , उसकी पत्नी व बच्चा सारे दिन ॐ नम: शिवाय का जप करते l यह देख पार्वती जी ने शंकर जी से कहा --- " ये हमारे भक्त लोग हैं , हम यहाँ से निकल रहे हैं तो इन बेचारों को कुछ वरदान देकर चलें l " शंकर जी ने कहा --- " पार्वती ! बेकार है इनको वरदान देना l ये इस लायक नहीं हैं कि इन्हे कुछ दिया जाये l न तो इनमे पात्रता है और न सँभालने की क्षमता l " पार्वती जी ने कहा --- नहीं महाराज ! आप तो ऐसे ही बहाने बना देते हैं l पहले आप इन्हे कुछ दें , फिर पता चलेगा l शंकर जी राजी हो गए और उन तीनों से वरदान मांगने को कहा l ब्राह्मण की पत्नी जरा समझदार थी , सबसे पहले वह आगे आई l शंकर जी ने पूछा --- ' तुम्हारी मनोकामना क्या है ? ' वह बोली --- " भगवन ! हमें बीस साल की खूबसूरत युवती बना दीजिए l " भगवन ने कहा --- तथास्तु ! अब वह बहुत खूबसूरत हो गई l ब्राह्मण ने उसे देखा तो उसे बहुत गुस्सा आया कि अब तो ये पति , बच्चा सबको भूल जाएगी l अब ब्राह्मण की बारी आई वरदान मांगने की तो उसने शंकर जी से कहा --- " भगवन ! इस स्त्री को शूकरी बना दीजिये l ' शंकर जी ने कहा --- " अच्छी तरह सोच लो l ' उसने कहा ---" महाराज जी ! मैंने सोच समझकर ही वर माँगा है l शंकर ही तो भोले बाबा हैं , उनने तथास्तु कहते हुए जल छिड़का , तो वह सुन्दर नारी से शूकरी बन गई l बालक यह सारा दृश्य देखकर रोने लगा l शंकर जी ने कहा --- " तुम क्यों रोते हो ? तुम भी वरदान मांग लो l बच्चे ने कहा --- " भगवन ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी माँ को पहले जैसी बना दीजिए , मुझे मेरी माँ चाहिए l शंकर जी ने कहा --- ' तथास्तु ! और वह ब्राह्मण की पत्नी पुन: शूकरी से पहले जैसी स्थिति में आ गई l शंकर जी ने पार्वती जी से कहा " देवि ! देखा आपने , इन तीनों ने तीन वरदान व्यर्थ गँवा दिए l चाहते तो विवेकपूर्ण वरदान लेकर अपना जीवन और जन्म सुधार सकते थे l हमें ईश्वर से प्रार्थना कर के कुछ माँगना और जो मिला है उसका सदुपयोग करना आना चाहिए l
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