मान्यता है कि वाल्मीकि जी ने ही तुलसीदास जी की देह धरकर सहज , सरस और सरल भाषा में रामचरितमानस का सृजन किया था l रामचरितमानस की रचना से तुलसीदास जी जन - जन के हृदय में प्रतिष्ठित हो गए , उनकी ख्याति तथा प्रतिष्ठा में आशातीत वृद्धि हुई और उनके दर्शनों के लिए अनेक राजा - महाराजे तथा भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आने लगे l यह सब देख एक व्यक्ति ने उनसे पूछा ---- " आजकल इतने बड़े लोग उनके पास क्यों आते हैं ? " इसके उत्तर में तुलसीदास जी ने कहा --- " यह सब भगवान श्रीराम जी की कृपा है -- लहइ न फूटी कौड़िहू को चाहै केहि काज l सो तुलसी महँगो कियो , राम गरीब निवाज l
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