संतों ने ऋषियों ने कहा है कि मृत्यु का स्मरण बने रहने से हम बुरे कर्म , पाप कर्म करने से बचेंगे l संत कबीर ने कहा है --- काल जीव को ग्रासई , बहुत कहा समुझाय l कहै ! कबीर मैं क्या करूँ , कोई नहीं पतियाय l संत कबीर कहते हैं मैंने बहुत प्रकार से समझाकर कहा कि एक दिन हर प्राणी को काल पकड़ेगा , परन्तु मैं क्या करूँ , कोई मेरी बात पर विश्वास ही नहीं करता---- l
रावण , कंस , कुम्भकरण से लेकर औरंगजेब जैसे क्रूर शासकों ने अपने जीवन में न जाने कितने अत्याचार , अमानवीय कृत्य किए l शायद यही सोचकर कि वे स्वयं कभी मरेंगे ही नहीं l जिन लोगों के लिए धन , दौलत , ऐश्वर्य ही सब कुछ है , उनका जीवन भय और आशंका से घिरा हुआ होता है l उनके अपने कर्म ही उन्हें डराते हैं l उनके प्रभाव व भय से बाहर उनकी जय - जयकार भले ही हो रही हो , पर उनके भीतर हाहाकार मचा हुआ होता है l समस्त भौतिक वैभव एवं साधनों के बीच होते हुए भी वे अंदर से दुःखी व कंगाल होते हैं l पं. श्रीराम शर्मा , आचार्य जी का कहना है --- जीवन में उल्लास , आनंद , मधुरता तभी संभव है जब मनुष्य सच्चाई की , नैतिकता और अध्यात्म की राह पर चले और इन राहों पर चलना तभी संभव है , जब हमें यह बोध हो कि हमारा जीवन नश्वर है , मृत्यु अटल है , हमारे द्वारा किए गए कर्मों का फल मिलना भी सुनिश्चित है l
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