हकीम अजमल खाँ जाने - माने चिकित्सक होने के अतिरिक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भी थे l एक बार वे किसी रजवाड़े में बीमार नवाब को देखने गए l नवाब और बेगम शाही लिबास पहने बैठे थे l जब अजमल खां उन्हें देखकर चलने लगे तो नवाब साहब ने उनसे उनका मेहनताना पूछा l हकीम साहब ने उत्तर दिया --- " बुरा न माने नवाब साहब तो मेरा मेहनताना सिर्फ इतना होगा कि आप लोग खादी धारण कर लें l जब देश का एक आम आदमी तन ढंकने के लिए चंद कपड़े नहीं जुटा पाता तो ऐसे में रत्नजड़ित पोशाकों को पहनना आपको शोभा नहीं देगा l " बेगम साहिबा बोलीं ---- " पर हकीम साहब ! खादी खुरदरी बहुत है , पहनने में जरा तकलीफ होती है l " हकीम अजमल खां बोले --- " बेगम साहिबा ! अपनी माँ बदसूरत हो तो भी माँ तो अपनी ही है l कपड़े खुरदरे ही सही पर स्वदेशी तो हैं l " अजमल खां की बात से प्रभावित होकर नवाब साहब और उनकी बेगम ने आजादी के आंदोलन में भाग लेना प्रारंभ कर दिया l
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