तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है ---- ज्ञानिन कर चित्त अपहरई l हरियाई विमोह मन करई l ' यानि महामाया महाज्ञानियों के चित्त का भी हरण कर लेती हैं और उनके मन को मोह में डाल देती हैं l ----- इस प्रसंग की व्याख्या करने वाली कथा जो सत्य घटना पर आधारित है ' अखण्ड ज्योति ' में प्रकाशित हुई , इस प्रकार है ------ भगवान श्रीराम की पावन जन्म भूमि अयोध्या में श्रीराम कथा चल रही थी l एक वृद्ध संत जो भगवान के अनन्य भक्त थे , कथा सुना रहे थे l श्रोताओं में अनेक संत - महात्मा भी थे l इनमे एक युवा संत जिनकी आयु लगभग चौबीस वर्ष होगी , कथा सुन रहे थे , उनका नाम था अनुभवानन्द सरस्वती l इनके ज्ञान , तप , बोध का सब आदर करते थे l इस प्रसंग --ज्ञानिन ------ पर चर्चा होने पर युवा संत अनुभवानंद ने आपत्ति उठाई , बोले --- " यहाँ तुलसी बाबा गलत कह गए l भला ज्ञानी को व्यामोह कैसा ? महामाया तो कभी भी ज्ञानियों के चित्त का स्पर्श भी नहीं कर सकतीं l और जिसके चित्त का स्पर्श महामाया कर सकें उसे ज्ञानी नहीं कहा जा सकता l " उनके इस कथन पर कथावाचक संत बोले --- " महाराज ! आप अपने को क्या मानते हैं ? " इस प्रश्न पर मुखर होकर युवा संत बोले -- " निश्चित रूप से ज्ञानी l ऐसा ज्ञानी , जो महामाया के प्रभाव से सर्वथा मुक्त है l " उनकी इस बात पर कथावाचक संत ने कहा ---- " अब ऐसे में मैं क्या तर्क - वितर्क करूँ l बस , मैं तो भगवती से यही प्रार्थना करता हूँ कि गोस्वामी जी महाराज की इस चौपाई का अर्थ वही आपको समझाएं l " बात ख़त्म हो गई और काफी समय बीत गया l इस बीच युवा संत अनुभवानंद एक वृद्ध संत के साथ नर्मदा परिक्रमा के लिए निकले l परिक्रमा - पथ पर एक गाँव आया , वहां के जमींदार ने दोनों संतों की खूब आवभगत की और बाद में वृद्ध संत की विदा की और युवा संत को रोक लिया l युवा संत भी इसे भक्ति मानकर रुक गए l एक दिन दोपहर में जब संत विश्राम कर रहे थे तो जमींदार की युवा पुत्री उनके पाँव दबाने लगी l नींद खुलने पर संत ने आपत्ति जताई l लेकिन कन्या का सौंदर्य , जमींदार की मनुहार के साथ लोभ , मोह और भय सबने उन्हें घेर लिया l अंतत: जमींदार की कन्या उनकी पत्नी बन गई और एक वर्ष में वे एक सुन्दर बालक के पिता बन गए l लगभग तीन वर्ष बाद उनका मोह भंग हुआ और वे पुन: अयोध्या लौटे l वहां वही राम कथा का पुराना प्रसंग चल रहा था l अब वह महामाया के प्रभाव से परिचित हो चुके थे , उन्होने सिर नवाकर कथावाचक संत से क्षमा मांगी और कहा ----- " निःसंदेह तुलसी बाबा सही हैं l महामाया ज्ञानियों के भी चित्त को बलात हरण कर के मोह में डाल देती हैं l , केवल उनकी भक्ति और उनकी कृपा से ही इस प्रभाव से मुक्ति संभव है l
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