चित्रगुप्त महाराज के यहाँ समाधान न हो पाने से समस्या धर्मराज के सामने लाई गई l एक संत अपने त्याग के बदले सद्गति चाहते थे , जबकि चित्रगुप्त के हिसाब से उन्हें केवल कुलीन कुल में जन्म देने की व्यवस्था थी l धर्मराज ने विवरणों का सर्वेक्षण किया और बोले --- " संत जी , आपका यह कथन ठीक है कि आपने सांसारिक पद - प्रतिष्ठा का मोह नहीं किया और समय और शक्ति उसमे नष्ट नहीं की l त्याग के इस साहस के पुण्य से आपको श्रेष्ठकुल व सत्परिस्थितियों में जन्म मिलेगा l किन्तु आपने त्याग के द्वारा बचाई ईश्वरीय विभूतियों को किसी ईश्वरीय उद्देश्य में , लोक - कल्याण में नहीं लगाया l उन्हें सही दिशा में गति नहीं दी l इसलिए आप सद्गति के अधिकारी नहीं बनें l " संत का समाधान हो गया और अगले जीवन में त्याग के साथ शक्तियों के सुनियोजन का संकल्प लेकर विदा हुए l
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