एक बार की बात है यमराज और उनके दूत धरती से आत्माओं को ले जाते , ढोते बहुत थक गए l युगों से यह कार्य कर रहे थे , किसी भी दिन कोई छुट्टी नहीं l उन्होंने महाराज से कुछ दिनों की छुट्टी माँगी l महाराज ने पहले तो मना किया , लेकिन पहली बार छुट्टी मांगी , तो देनी पड़ी l अब महाराज ने सोचा कि थोड़े दिनों की ही तो बात है क्यों न मृत्यु का ठेका कुछ मनुष्यों को सौंप दिया जाये l बहुत सोच - विचार के यह ठेका उन लोगों को सौंप दिया जो संपन्न थे , उम्मीद थी कि किसी लालच में नहीं आएंगे l लेकिन मनुष्य के लालच और तृष्णा का कोई अंत नहीं l ठेका मिलते ही उन्होंने मृत्यु को भी व्यापार बना दिया और उनकी तथा उनके आधीन काम करने वालों की सम्पति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ गई l इतने लोग मरने लगे कि संसार में हाहाकार मच गया l न केवल संसार में बल्कि ऊपर ब्रह्माण्ड में भी हाहाकार मच गया l यमराज जब आत्माओं को ले जाते थे तो न्याय होता था , कर्म के अनुसार स्वर्ग , नरक मिलता था लेकिन यमराज के छुट्टी लेने से आसुरी शक्तियां क्रियाशील हो गईं l अनेक अच्छी और बुद्धिमान आत्माओं को असुरों ने अपने कब्जे में कर लिया और उन्हें पीड़ित कर , जबरन दबाव बनाकर उनकी बुद्धि का उपयोग कर के संसार में असुरता का तांडव मचा दिया l गेहूं के साथ घुन भी पिसता है , संसार में अच्छे - बुरे सब अनेक परेशानियों में घिर गए , बहुत परेशान हुए l सबकी प्रार्थनाओं से शेषनाग पर शयन कर रहे भगवान भी जाग गए l उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र को भेजकर श्रेष्ठ आत्माओं को असुरता के चंगुल से मुक्त कराया l जब भी संसार में असुरता , अन्याय और अत्याचार बढ़ जाता है तब ईश्वर युग के अनुरूप अपने प्रयास से असुरता का अंत करते हैं l
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