अत्याचारी और अन्यायी को यदि सत्ता का संरक्षण प्राप्त हो तो उसके परिणाम घातक होते हैं और उसका सामना करने के लिए धैर्य और विवेक की जरुरत है l महाभारत में एक प्रसंग है ----- राजा विराट का सेनापति था कीचक l बहुत शक्तिशाली था और उसकी गलतियों पर उसे मना करने और समझाने की राजा विराट में हिम्मत नहीं थी l पांचों पांडव और द्रोपदी अज्ञातवास के दौरान राजा विराट के यहाँ वेश बदलकर रह रहे थे l महारानी द्रोपदी ' सैरन्ध्री ' नाम से रनिवास में रानी की सेवा करती थीं l कीचक , राजा विराट की पत्नी का भाई था इसलिए रनिवास में बेरोक -टोक आता जाता था l जब से उसकी नजर सैरंध्री पर पड़ी , उसके मन में पाप आ गया और वह सैरंध्री से अनुचित व्यवहार करने लगा l एक दिन एकांत पाकर द्रोपदी ने अपना दुःख भीम से व्यक्त किया कि किस प्रकार कीचक उसे अपमानित करता है l भीम को बहुत क्रोध आया लेकिन उन्होंने द्रोपदी को समझाया कि कीचक बहुत बलशाली है , राजा विराट स्वयं उससे डरते हैं , उसे सत्ता का संरक्षण प्राप्त है इसलिए तुम उसका मुकाबला नहीं कर सकतीं , उसका अंत करने के लिए धैर्य और विवेक से कोई तरकीब सोचनी पड़ेगी l फिर भीम की सलाह के अनुसार दूसरे दिन जब कीचक सैरंध्री के सामने आया तो सैरंध्री ने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे वे उसके प्रस्ताव से सहमत हों साथ ही यह शर्त रखी कि वह अर्धरात्रि में नृत्यशाला में आये , चारों और घना अंधकार हो जिससे कोई देख न सके , लोक लाज का डर है l वहीँ सैरंध्री उसका इंतजार करेगी l जब रात्रि में कीचक नृत्यशाला पहुंचा तो वहां द्रोपदी के स्थान पर भीम बैठे थे , उन्होंने कीचक को ललकारा , फिर दोनों में मल्ल्युद्ध हुआ l बृहन्नला के वेश में अर्जुन मृदंग बजाते रहे , जिससे युद्ध का शोर बाहर न जाये , सुबह होने से पूर्व ही भीम ने कीचक का वध कर दिया ll
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