एक बार सम्राट विक्रमादित्य अपने सेनापति और मंत्री के साथ रथ पर सवार होकर कहीं जा रहे थे l मार्ग में उन्होंने देखा कि सड़क पर धान के दाने बिखरे पड़े हैं l उन्होंने अपने सारथी से कहा --- " सारथी ! रथ रोको l यहाँ भूमि हीरों से पटी पड़ी है l जरा मुझे हीरे उठाने दो l " उनके मंत्री ने भूमि की ओर देखा और बोले ---- " महाराज ! संभवतया आपको भ्रम हुआ है l भूमि पर हीरे नहीं , धान के दाने पड़े हुए हैं l " सम्राट विक्रमादित्य तुरंत रथ से उतरे और धान के दानों को बटोरकर अपने माथे से लगाने लगे l ऐसा कर के उन्होंने अपने मंत्री की ओर देखा और बोले --- "मंत्री जी ! आपने पहचानने में भूल की l असली हीरा तो अन्न ही होता है l अन्न से ही सबका पेट भरता है l इसलिए अन्न को हमारे ऋषि - मुनियों ने श्रद्धापूर्वक अन्नदेव कहकर सदैव उसका सम्मान करने की प्रेरणा दी l अत: अन्न के प्रत्येक दाने का आदर करना चाहिए l अन्न का यह दाना किसी हीरे से कम कैसे हो सकता है ? " सम्राट विक्रमादित्य के ऐसा कहने पर अचानक उनके मंत्री को अनुभूति हुई कि जैसे साक्षात् अन्नपूर्णा वहां खड़ी होकर सम्राट विक्रमादित्य को आशीर्वाद दे रही हों l
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