10 December 2020

WISDOM----

    एक  बार  सम्राट  विक्रमादित्य   अपने  सेनापति  और  मंत्री  के  साथ  रथ  पर  सवार  होकर  कहीं  जा  रहे  थे  l   मार्ग  में  उन्होंने  देखा   कि   सड़क  पर  धान  के  दाने   बिखरे  पड़े  हैं  l   उन्होंने  अपने  सारथी   से  कहा  --- " सारथी  !  रथ  रोको  l   यहाँ  भूमि  हीरों  से  पटी   पड़ी  है  l   जरा  मुझे  हीरे   उठाने  दो  l  "  उनके  मंत्री  ने  भूमि  की  ओर   देखा   और  बोले  ---- " महाराज  !  संभवतया  आपको   भ्रम  हुआ  है   l   भूमि  पर  हीरे   नहीं ,  धान   के  दाने  पड़े  हुए  हैं  l  "   सम्राट  विक्रमादित्य  तुरंत  रथ  से  उतरे   और  धान  के  दानों  को  बटोरकर  अपने  माथे   से  लगाने  लगे  l   ऐसा  कर  के  उन्होंने  अपने  मंत्री    की  ओर    देखा   और  बोले  --- "मंत्री जी  !  आपने  पहचानने  में  भूल  की  l   असली  हीरा   तो  अन्न  ही  होता  है  l   अन्न   से   ही  सबका  पेट  भरता  है  l   इसलिए  अन्न  को  हमारे  ऋषि - मुनियों  ने   श्रद्धापूर्वक  अन्नदेव  कहकर   सदैव  उसका  सम्मान  करने  की  प्रेरणा  दी   l   अत:  अन्न  के  प्रत्येक  दाने  का  आदर  करना  चाहिए   l   अन्न  का  यह  दाना  किसी  हीरे  से  कम  कैसे   हो  सकता  है  ? "    सम्राट  विक्रमादित्य  के  ऐसा  कहने  पर   अचानक  उनके  मंत्री  को  अनुभूति  हुई   कि   जैसे  साक्षात्  अन्नपूर्णा  वहां  खड़ी  होकर    सम्राट विक्रमादित्य  को  आशीर्वाद   दे  रही  हों   l 

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