पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' हर व्यक्ति के व्यक्तित्व की एक संरचना होती है , और उसमें अनेक दृश्य और अदृश्य तत्व होते हैं l जो दृश्य है वह हमारा व्यवहार है और जो अदृश्य है उसमे हमारी आस्था , विश्वास , विचार व भाव सम्मिलित होते हैं l सज्जन और श्रेष्ठ व्यक्तियों की इमेज ( छवि ) परिष्कृत होती है क्योंकि उनका हृदय संवेदनशील होता है , वे सबके कल्याण , सबकी भलाई के बारे में सोचते हैं l ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तियों से जो भी मिलता है उसके हृदय में उनकी अमिट छाप पड़ जाती है l लेकिन अनेक व्यक्ति नकारात्मक सोच और नकारात्मक विचारों वाले होते हैं l वे किसी को सुखी व स्वस्थ देख नहीं पाते l किसी को असफल होते देख इनको आंतरिक प्रसन्नता होती है l इनके पास आसुरी शक्तियों एवं अँधेरे का जमघट होता है l इनका व्यक्तित्व ही आसुरी शक्तियों द्वारा संचालित होता है l ऐसे नकारात्मक चिंतन और व्यवहार से जितनी दूरी बनाई जा सके , उतना ही श्रेयस्कर है l ' रामायण में यदि हम रावण के चरित्र को देखें तो रावण ऋषि विश्रवा का पुत्र और ऋषि पुलस्त्य का पौत्र था l ऋषि विश्रवा के सगे भाई थे अगस्त्य ऋषि l ऋषि कुल में पैदा होकर भी वह स्वयं को गर्व से ' राक्षसराज रावण ' कहता था l शिव भक्त था l वेद शास्त्रों का बड़ा विद्वान् था लेकिन उसने दसों दिशाओं में आतंक फैला रखा था l ऋषियों को सताता , उनके यज्ञ आदि पवित्र कार्यों को नष्ट करता l लोगों को कष्ट पहुँचाने में ही उसको आनंद आता था l अपने आसुरी कार्यों के लिए उसने हर दिशा में अनेक राक्षस नियुक्त कर रखे थे , इसके अतिरिक्त लोगों को कष्ट देने के लिए अनेक राक्षसियों को भी नियुक्त कर रखा था l जब श्री हनुमान जी समुद्र पार कर रहे थे तो उनका सामना सुरसा नामक राक्षसी से हुआ l लंका के द्वार पर पहुंचे तो वहां पहरा देती लंकिनी मिल गई l सीताजी को सताने व डराने के लिए त्रिजटा आदि अनेक राक्षसियों को रखा था l मंदोदरी जैसी पतिव्रता पत्नी के होते हुए भी उसने सीता -हरण किया l उच्च कुल में पैदा होकर भी उसका व्यक्तित्व आसुरी था l भगवान राम से युद्ध से पूर्व जब उसने शक्ति की उपासना की तो देवी ने उसे आशीर्वाद दिया ' कल्याण हो ' l क्योंकि रावण का , राम के हाथों मिट जाने में ही कल्याण था l अपने अंतिम समय में वह भी समझ गया कि राम साक्षात् भगवान हैं , वह कहने लगा -- भगवन ! मेरे जीते जी आप मेरे धाम लंका नहीं आ सके लेकिन आपके हाथों मृत्यु को प्राप्त कर मैं आपके जीते जी आपके धाम जा रहा हूँ l '
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