विज्ञान आज इतनी ऊंचाइयों पर पहुँच गया कि स्वयं को श्रेष्ठ समझकर प्रकृति को चुनौती देने लगा है l ईश्वर ने मनुष्य को जीवित रहने के लिए सब कुछ नि:शुल्क दिया और नि:स्वार्थ भाव से दिया l हवा , पानी , मिटटी , सूर्य का प्रकाश -- सभी कुछ हमें स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति ने हमें दिया l प्रकृति की यह देन शुद्ध है , पवित्र है इसमें कितनी भी मिलावट हो जाये , फिर भी इसमें ईश्वरीय अंश है l लेकिन अब मनुष्य ईश्वर की देन पर भी संदेह करने लगा है और विज्ञान की देन पर विश्वास करने लगा है l यदि हम अपने खिड़की , दरवाजे बंद कर लेंगे , उसमे एक छिद्र भी नहीं होगा तो सूर्य का प्रकाश हमारे पास कैसे आएगा ? इसकी कमी से हमें अनेक बीमारी होंगी l इसी तरह वृक्षों को देवता कहा जाता है , वे हमें प्राणवायु देते हैं लेकिन हम क्योंकि विज्ञान को मानने लगे हैं , हम पर दुर्बुद्धि का प्रकोप है इसलिए इस प्राणवायु पर हम विश्वास नहीं करते , इस पर रूकावट डालते हैं तो अंत में हमें कृत्रिम तरीके पर निर्भर रहना पड़ता है l परिणाम सबके सामने है l एक कटु सत्य हमें समझना होगा कि विज्ञानं को इनसान ने बनाया है और इनसान बिना स्वार्थ के किसी को कुछ नहीं देता इसलिए पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है ---- आज के युग की सबसे बड़ी जरुरत सद्बुद्धि की है l हम नेक रास्ते पर चलें और ईश्वर से सद्बुद्धि की प्रार्थना करें l संसार की सारी समस्याओं का एकमात्र हल सद्बुद्धि है l
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