इंद्र ने विप्र बनकर छलपूर्वक सूर्यपुत्र कर्ण के कवच - कुण्डल ले लिए l कर्ण के समक्ष शर्मिंदा स्थिति में खड़े इंद्र से कर्ण ने कहा --- " मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि आज स्वर्ग धरती से नीचा हो गया l मेरे दान के व्रत से आज देवपति इंद्र भी भिक्षुक बनकर आये हैं l अपने लाल की रक्षा के लिए l " भगवान भास्कर ने आकाश से यह दृश्य देखा और अपनी रश्मियों से कर्ण के शरीर को स्पर्श कर कहा --- " वीर ! तू मेरा सच्चा पुत्र निकला रे ! तुझे मैं आज आशीर्वाद देता हूँ l आज तूने पृथ्वी को महान और स्वर्ग को तुच्छ बना दिया l स्वर्ग ने पृथ्वी पर आकर भिक्षा मांगी l धन्य है कर्ण ! तू धन्य है !
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