हिन्दुस्तान की धरती पर एक -से - बढ़कर एक वीरांगनाएं हुईं , एक ऐसी ही वीरांगना आज से लगभग चार सौ वर्ष पहले भी हुई थी l उस समय भी सम्राट अकबर के दबदबे से बड़े - बड़े राजा उसके आधीन हो गए थे l पर उस समय नारी होते हुए भी रानी दुर्गावती ने दिल्ली सम्राट की विशाल सेना के सामने खड़े होने का साहस किया और उसे दो बार पराजित कर के ;पीछे खदेड़ दिया l साम्राजयवाद एक प्रकार का अभिशाप है l रानी दुर्गावती से कभी यह आशंका नहीं हो सकती थी कि वे अकबर की सल्तनत पर कभी आक्रमण करेंगी l लेकिन धन और राज्य की लालसा मनुष्य को न्याय - अन्याय के प्रति अँधा बना देती है l लोभ उसकी आँखों पर पट्टी बाँध देता है कि उसे सिवाय अपनी लालसापूर्ति के और कोई बात दिखाई नहीं देती l फिर स्त्री पर आक्रमण करना एक प्रकार से कायरता की बात समझी जाती है l इस प्रकार का आचरण मनुष्य को कभी स्थायी रूप से लाभदायक नहीं हो सकता l रानी दुर्गावती पर आक्रमण करने का कोई कारण न होते हुए भी केवल इस भावना से चढ़ दौड़ना कि हमारी शक्ति और साधनों का वह मुकाबला कर ही नहीं सकेगी तो उसे लूटा क्यों न जाये , उच्चता और श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं माना जा सकता l
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