पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- ' विपत्तियों को हँसकर तप करने के निमित्त स्वीकार करना चाहिए l कभी उनसे डरना नहीं चाहिए l ' ----- द्रोणाचार्य कौरव सेना के सेनापति बने l पहले दिन का युद्ध बहुत कौशल के साथ लड़े , तो भी उस दिन की विजय अर्जुन के हाथ लगी l यह देखकर दुर्योधन बड़ा निराश हुआ l हताश और क्रोध से भरी मन:स्थिति के साथ वह गुरु द्रोण के पास गया और बोलै --- " गुरुदेव ! अर्जुन तो आपका शिष्य मात्र है l आप तो उसे एक क्षण में परास्त कर सकते हैं l फिर ऐसा कैसे हुआ ? " द्रोणाचार्य गंभीर मुद्रा में बोले ---- " तुम ठीक कहते हो , पर एक तथ्य नहीं जानते हो l अर्जुन मेरा शिष्य अवश्य है , पर उसका सारा जीवन कठिनाइयों से संघर्ष में , वनवास में , अज्ञातवास में बीता l मैंने राजसी सुख में जीवन काटा है l कुधान्य खाया है l विपत्ति ने उसे मुझसे भी अधिक बलवान बना दिया है l "
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