संकल्पवान व्यक्ति एक दीपक की तरह छोटा ही क्यों न हो , देर - सवेर भगवान किसी न किसी रूप में उसे सहारा देने पहुँच ही जाते हैं l ------- यज्ञ होना था l उसके लिए समिधाओं का ढेर लगा था l ऋषि ने डीप प्रज्वलन का क्रम किया l दीपक को टिमटिमाता देख समिधाओं का ढेर हँसा और बोला ---- " ये छोटा सा दीपक भला हमारा क्या बिगाड़ेगा ? " अग्नि स्थापना का क्रम आया तो दीपक से निकली छोटी सी लौ ने यज्ञ-अग्नि की स्थापना कर दी l आहुतियों के साथ एक - एक कर सभी समिधाएं होम हो गईं l सारी घटना को अंतर्दृष्टि से देखते हुए ऋषि अपने शिष्यों से बोले ---- " प्रखरता चाहे एक लौ के बराबर ही क्यों न हो , वो अकेले तमस के साम्राज्य से टकराने में सक्षम है l हमें भी अपनी तपस्या का प्रकाश इतना प्रबल और उज्ज्वल करना चाहिए कि हम गहन अंधकार के बीच भी अपना मार्ग बना सकें l
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