पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' यदि संगठित रूप से अत्याचार , अन्याय का प्रतिरोध किया जाए तो शक्तिशाली बर्बरता को भी परास्त किया जा सकता है l एक कहानी है ----- एक पेड़ पर चिड़िया का घोंसला था l उसी पेड़ के नीचे चींटी का बिल भी था l चींटी और चिड़िया में गहरी दोस्ती थी l उस घोंसले में चिड़िया के छोटे - छोटे बच्चे थे l जब चिड़िया उन बच्चों के लिए दाना लेने जाती तब चींटी वहीँ पेड़ के आसपास रहकर उसके बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखती l एक दिन चिड़िया दाना लेने गई हुई थी , तभी वहां से एक मदमस्त हाथी निकला l चींटी ने दौड़कर उस हाथी को सचेत किया कि तुम इस पेड़ से दूर होकर निकलो , इसमें चिड़िया के घोंसले में छोटे बच्चे हैं l लेकिन हाथी को तो अपनी शक्ति का अहंकार था , उसने चींटी की उपेक्षा कर दी और अपनी सूँड से पेड़ को जोर से हिला दिया , उसकी कुछ डालें भी तोड़ दीं l चिड़ियाँ का घोंसला टूट गया , उसके बच्चे भी गिरकर - दबकर मर गए l चींटी बहुत उदास हो गई , जब चिड़िया आई तो सब कुछ बिखरा हुआ देखकर दोनों खूब फूट -फूटकर रोईं l फिर दोनों ने परस्पर धैर्य बँधाया और कहा कि ऐसे रोने से काम नहीं चलेगा l आज हाथी ने अपने अहंकार में हमारा घोंसला तोड़ा है , कल किसी और का तोड़ेगा l दोनों ने मिलकर उस हाथी को ढूँढ़ लिया , जब हाथी सैर को निकला तो चिड़िया उसके चारों और चीं - चीं कर उड़ने लगी l हाथी समझ गया , बोला --- तू छोटी चिड़िया मेरा क्या बिगाड़ेगी , तुझे तो मैं एक ही बार में कुचल दूंगा l हाथी अपने अहंकार में था , मौका पाकर चींटी उसकी सूँड में घुस गई l अब तो हाथी चिंघाड़ने लगा ,------ छोटी सी चींटी ने हाथी को परास्त कर दिया l वह समझ गया कि ईश्वर ने यदि हमें कोई शक्ति दी है तो हमें कमजोर की रक्षा करनी चाहिए , उस पर अत्याचार नहीं करना चाहिए l
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