महाभारत में ' विदुर नीति ' में एक श्लोक है जिसका भावार्थ है ---- महात्मा विदुर धृतराष्ट्र से कहते हैं --- " हे राजन ! इस संसार में दूसरों को निरंतर प्रसन्न करने के लिए प्रिय बोलने वाले प्रशंसक लोग बहुत हैं , परन्तु सुनने में अप्रिय लगे और वह कल्याण करने वाला वचन हो , उसका कहने और सुनने वाला पुरुष दुर्लभ है l " महर्षि दयानन्द ऐसे विरले मनुष्य थे , वे राजाओं -महाराजाओं के सामने , बड़े अंग्रेज अफसरों की उपस्थिति में निर्भीक होकर सबके हित की सत्य बात कहा करते थे l स्वामीजी मूर्ति पूजा के विरोधी थे , वे कहते थे ---- मेरा काम लोगों के मन - मंदिरों से मूर्तियां निकलवाना है , ईंट पत्थर के मंदिरों को तोड़ना नहीं l महर्षि दयानन्द मानते थे कि हमारा नाम आर्य है , हिन्दू नहीं l आर्य का अर्थ है श्रेष्ठ पुरुष l विदेशियों ने हमें हिन्दू नाम दिया l उनके द्वारा रचित ' सत्यार्थ प्रकाश ' सोई हुई जाति के स्वाभिमान को जगाने वाला अद्वितीय ग्रन्थ है l
No comments:
Post a Comment