पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' लोकसेवियों के पतन का कारण मुख्य रूप से तीन दुष्प्रवृत्तियाँ हैं ---- वासना , तृष्णा और अहंता l वासना और तृष्णा की दौड़ तो व्यक्ति को थकाती है , पर अहंता का मुख तो सुरसा के मुख से भी ज्यादा विशाल है , जो व्यक्ति का सर्वनाश किए बिना चैन से नहीं बैठता l अहंता के भूखे को दुनिया जहान की सारी प्रशंसा , सारा यश , सारा मान - सम्मान , सारा बड़प्पन, सारे अधिकार , सारी सत्ता अपने ही हाथों में देखने का पागलपन सवार हो जाता है l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " इस संसार के इतिहास में सबसे ज्यादा अपराध इसी अहंता के कारण हुए हैं l रावण से लेकर कंस , दुर्योधन को उनकी अहंता ही ले डूबी l अहंकार ही है जिसके कारण लोग आपस में लड़ते हैं l प्रतिशोध , उत्पीड़न इन सबका कारण अहंता ही है l कथा चाहे रावण की हो या हिरण्यकशिपु की या सिकंदर , तैमूरलंग , चंगेज खां , शिशुपाल की ---- इन सबके अंत का कारण उनके सिर पर सवार अहंता ही रही l यह अहंता ही है जो इन चक्रवर्ती सम्राटों को ले डूबी l आचार्य श्री कहते हैं ---- इस दुष्प्रवृति से सदा व निरंतर सावधान रहने की आवश्यकता है l '
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