राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री का पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के प्रति विशेष आदर भाव था l उनसे उनकी कई बार मुलाकात हुई l उनका कहना था कि ---" आचार्य जी से मिलने से मुझे एक अंतर्दृष्टि मिली , जिसने मुझे सेवा में योग - साधना के दर्शन कराए l " हीरालाल शास्त्री की बेटी शांताबाई की कम आयु में मृत्यु ने उन्हें गहरी भावनात्मक चोट पहुंचाई , लेकिन उन्होंने इस भावनात्मक चोट को बड़ी सकारात्मक सोच के साथ लिया l उन्होंने और उनकी पत्नी ने सोचा कि अपनी बेटी न सही , पर हर बेटी भी तो अपनी ही बेटी है l इस भावना के साथ उनके जो प्रयास हुए , उसी से जयपुर से 45 मील की दूरी पर ' वनस्थली विद्यापीठ ' की स्थापना संभव हो सकी l जब इसकी स्थापना हुई तब इस संस्था के पास न तो कोई अपनी भूमि थी , न भवन और न ही रुपया -पैसा l बस , थी तो केवल हीरालाल शास्त्री और उनकी पत्नी के मन की करुणा , प्रेम और उन दोनों की अटूट संकल्प शक्ति के साथ सेवा के प्रति सच्ची लगन l उसे देखकर महात्मा गाँधी ने कहा ---- " वनस्थली मेरे दिल में बसा हुआ है l " पं. नेहरू तो इससे इतने प्रभावित थे कि उन्होंने 1945 में यह कहा ----- " अगर मैं लड़की होता , तो अपनी शिक्षा के लिए वनस्थली को चुनता l "
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