8 March 2021

WISDOM----------

   यदि  भावनाएं  परिष्कृत  नहीं  हैं   तो  शोषण  का  समाप्त  होना  संभव  नहीं  है   l   पूंजीवादी  तंत्र   और  वैश्वीकरण   के  इस  दौर  में  नारी  को  एक  उपभोग  की  वस्तु  मान  लिया  गया  है     एवं  इसका  उपभोग  एवं  शोषण  करने  की  प्रक्रिया  चल  पड़ी  l  लायली   फिलीप्स   ने  ' दि   वुमेनिस्ट  रीडर  '  में   नारी  को  उपभोग  की  वस्तु  मानने   के  पीछे   वर्चस्ववादिता   है   l   उनका  कहना  है  कि   नारी  को  विज्ञापन  की  वस्तु  बताकर   जिस  प्रकार  पेश  किया  जाता  है  ,  उससे  स्पष्ट  होता  है   कि   उसे  अभी  समाज  में   सामाजिक , राजनीतिक  ,  आर्थिक  ढांचे  का  सहज  समर्थन  प्राप्त  नहीं  है  l   नारी  केवल  अपनी  रूचि   एवं  स्वतंत्र  इच्छा  से  देह  प्रदर्शन  नहीं  करती  ,  बल्कि   उस पर  कुछ  व्यक्तियों   की  वर्चस्व  कायम  करने  की   सोच  भी  शामिल  है   l   नारी  की  छवि   इस  बाजार  ने  उस  पर  थोपी  है  ,  जो   नारी   को एक  उपभोग  की   वस्तु  बना  देने  के  लिए  प्रतिक्षण  सक्रिय   है   l  इस   उपभोक्तावादी  मानसिकता  के  रहते   नारी  की  स्वतंत्रता  एवं  समानता  की  बातें   केवल  बातें  रहेंगी   l 

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