यदि भावनाएं परिष्कृत नहीं हैं तो शोषण का समाप्त होना संभव नहीं है l पूंजीवादी तंत्र और वैश्वीकरण के इस दौर में नारी को एक उपभोग की वस्तु मान लिया गया है एवं इसका उपभोग एवं शोषण करने की प्रक्रिया चल पड़ी l लायली फिलीप्स ने ' दि वुमेनिस्ट रीडर ' में नारी को उपभोग की वस्तु मानने के पीछे वर्चस्ववादिता है l उनका कहना है कि नारी को विज्ञापन की वस्तु बताकर जिस प्रकार पेश किया जाता है , उससे स्पष्ट होता है कि उसे अभी समाज में सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक ढांचे का सहज समर्थन प्राप्त नहीं है l नारी केवल अपनी रूचि एवं स्वतंत्र इच्छा से देह प्रदर्शन नहीं करती , बल्कि उस पर कुछ व्यक्तियों की वर्चस्व कायम करने की सोच भी शामिल है l नारी की छवि इस बाजार ने उस पर थोपी है , जो नारी को एक उपभोग की वस्तु बना देने के लिए प्रतिक्षण सक्रिय है l इस उपभोक्तावादी मानसिकता के रहते नारी की स्वतंत्रता एवं समानता की बातें केवल बातें रहेंगी l
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