8 March 2021

WISDOM -----

  स्वामी  विवेकानंद  कहते  हैं ---- ' नारी  पर  अत्याचार  और  शोषण   की  पटकथा   तभी  तक  लिखी  जा  सकी ,  जब  तक  उसने   सहनशीलता  और  धैर्य  की  चादर   ओढ़े  रखी  l   जिस  दिन  वह  इस  चादर  को  उखाड़   फेंकेगी  ,  तब   उसे  कोई  रोक  नहीं  सकता  l   वे  कहते  हैं  नारी  की  समस्या  का  एकमात्र  समाधान  है    उसे  उसके  स्वरुप  से  परिचित  करा  दिया  जाये  l  '        हिंदी   साहित्य  का   सेक्सरिया   पुरस्कार , द्व्वेदी   पदक , मंगला  प्रसाद  पुरस्कार ,  भारत भारती  पुरस्कार  , पद्मभूषण ,  साहित्य  अकादमी  फैलोशिप  एवं  ज्ञानपीठ  पुरस्कार  पाने  वाली   विशिष्ट  विभूति    महादेवी  वर्मा    राष्ट्रीयता ,  भारतीयता  और  मानवीयता  की  अग्रदूत  हैं  l         पति  के  साथ  उनके   सांसारिक  संबंध   निभ  नहीं  सके  ,  फिर  उन्होंने  जीवन  को   नया  रूप  दिया  l   गद्य , काव्य , शिक्षा , चित्रकला   सभी  क्षेत्रों  में  नए  आयाम  स्थापित  किये  , स्वाधीनता  आंदोलन  में  भागीदार  बनीं  , जनसेवा  के  अनेक  कार्य  किये  l  वे  संन्यासिनी  थीं ,  हमेशा  श्वेत  वस्त्र  पहनती,  सदा  तख़्त  पर  सोतीं ,  श्रंगार - प्रसाधन  की  कौन  कहे  ,  कभी  शीशा   भी  नहीं  देखतीं  l   हिंदी  साहित्य    के  समूचे  संसार  में  कोई  उन्हें  मीरा  कहता ,  तो  कोई  उन्हें   माता  सरस्वती   का साकार  रूप   l   वे  सदा  परमात्मा  के  प्रेम  में  खोई  रहतीं  थीं  l   सांसारिक  संबंधों  में  उनके   तीन  लोग  परम  आत्मीय  रहे   l   ये  तीनों  उनके   सगे    भाई  से  भी  बढ़कर  थे  l   इनमें  से  पहले  थे  --- पं. जवाहर  लाल  नेहरू ,  उन्होंने  अपने  स्टाफ  से  कह  रखा  था   कि   जब  भी   महादेवी  मिलने  आएं  ,  उन्हें  बिना  किसी  रोक - टोक  के  ,  किसी  भी  समय  तत्काल  मिलाया  जाये   l  दूसरे  थे  सुमित्रानंदन  पंत   और  तीसरे  सूर्यकान्त  त्रिपाठी  निराला  l   महादेवी  वर्मा  कहतीं  थीं ----' मेरी  कविताओं  में  जो  आँसू   का  जल  है  ,  वह  समाज - संसार  की   पीड़ा  से  उपजी   मेरी  विकलता  की  देन   है   लेकिन  इसी  के  साथ  इसमें  एक  आग  भी  है  ,  जो  इस  पीड़ा  को  मिटाने   वाले   संघर्ष  का  आव्हन   करती  है   l  '   उनकी  कविता  की   एक पंक्ति  है  ----" मेरे  निश्वासों  में  बहती  रहती  झंझावात  /   आँसू   में   दिन - रात  प्रलय  के  घन   करते  उत्पात  l  "

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