स्वामी विवेकानंद कहते हैं ---- ' नारी पर अत्याचार और शोषण की पटकथा तभी तक लिखी जा सकी , जब तक उसने सहनशीलता और धैर्य की चादर ओढ़े रखी l जिस दिन वह इस चादर को उखाड़ फेंकेगी , तब उसे कोई रोक नहीं सकता l वे कहते हैं नारी की समस्या का एकमात्र समाधान है उसे उसके स्वरुप से परिचित करा दिया जाये l ' हिंदी साहित्य का सेक्सरिया पुरस्कार , द्व्वेदी पदक , मंगला प्रसाद पुरस्कार , भारत भारती पुरस्कार , पद्मभूषण , साहित्य अकादमी फैलोशिप एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाली विशिष्ट विभूति महादेवी वर्मा राष्ट्रीयता , भारतीयता और मानवीयता की अग्रदूत हैं l पति के साथ उनके सांसारिक संबंध निभ नहीं सके , फिर उन्होंने जीवन को नया रूप दिया l गद्य , काव्य , शिक्षा , चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये , स्वाधीनता आंदोलन में भागीदार बनीं , जनसेवा के अनेक कार्य किये l वे संन्यासिनी थीं , हमेशा श्वेत वस्त्र पहनती, सदा तख़्त पर सोतीं , श्रंगार - प्रसाधन की कौन कहे , कभी शीशा भी नहीं देखतीं l हिंदी साहित्य के समूचे संसार में कोई उन्हें मीरा कहता , तो कोई उन्हें माता सरस्वती का साकार रूप l वे सदा परमात्मा के प्रेम में खोई रहतीं थीं l सांसारिक संबंधों में उनके तीन लोग परम आत्मीय रहे l ये तीनों उनके सगे भाई से भी बढ़कर थे l इनमें से पहले थे --- पं. जवाहर लाल नेहरू , उन्होंने अपने स्टाफ से कह रखा था कि जब भी महादेवी मिलने आएं , उन्हें बिना किसी रोक - टोक के , किसी भी समय तत्काल मिलाया जाये l दूसरे थे सुमित्रानंदन पंत और तीसरे सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला l महादेवी वर्मा कहतीं थीं ----' मेरी कविताओं में जो आँसू का जल है , वह समाज - संसार की पीड़ा से उपजी मेरी विकलता की देन है लेकिन इसी के साथ इसमें एक आग भी है , जो इस पीड़ा को मिटाने वाले संघर्ष का आव्हन करती है l ' उनकी कविता की एक पंक्ति है ----" मेरे निश्वासों में बहती रहती झंझावात / आँसू में दिन - रात प्रलय के घन करते उत्पात l "
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