दुष्ट व्यक्ति विभिन्न तरीकों से लोगों को उत्पीड़ित कर के स्वयं को विजयी समझते हैं किन्तु जो सन्मार्ग पर चलते हैं उनकी शांति को कोई छीन नहीं सकता ---- महात्मा बुद्ध एक बार अपने शिष्यों के साथ पंचशाला गाँव गए l वहां के लोग भगवान बुद्ध की ख्याति से बहुत पीड़ित थे , ईर्ष्या की आग उन लोगों के हृदय को जलाती थी l वहीँ के एक व्यक्ति ' भार ' ने जो भगवान बुद्ध से दुश्मनी रखता था , ग्रामवासियों के मन में बुद्ध के प्रति जहर भर दिया , इस कारण गांव वालों ने बुद्ध और उनके शिष्यों का बहुत अपमान किया l कटु ,वचन गालियाँ , व्यंग्यबाण , कचड़ा - कूड़ा , जूते - चप्पल यही सब उन्हें उस दिन भिक्षा में मिला l संध्या होने पर वे खाली पात्र लिए अपने शिष्यों के साथ गांव से बाहर वटवृक्ष की छाया में बैठ गए l उन्हें दुःखी करने के उद्देश्य से वह दुष्ट व्यक्ति भार भी वहां आ पहुंचा और मुस्कराते हुए उसने कहा --- " क्यों से श्रमण ! देखा मेरा प्रभाव , तुझे कुछ भी भिक्षा नहीं मिली l " भार के इन वचनों पर बुद्ध हँसे और बोले --- ' हाँ , भार ! आज तू भी सफल हुआ और मैं भी l " बुद्ध के इन वचनों को भार समझ न सका और बोला ------ " भला यह कैसे ? या तो तू सफल हुआ या मैं , दोनों -साथ साथ सफल कैसे हो सकते हैं ? यह तो तर्कहीन बात है l बुद्ध ने हँसकर कहा ------- " नहीं , यह तर्कहीन बात नहीं है l तू सफल रहा लोगों को भ्रष्ट करने में , भ्रमित करने में और मैं सफल हुआ अप्रभावित रहने में l तुम्हारी कोई भी चाल मुझे अशांत , अस्थिर व उत्तेजित नहीं कर सकी और यह भोजन से भी ज्यादा पुष्टिदायी है l "
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