इस संसार में अच्छाई और बुराई दोनों का अस्तित्व है l अच्छाई अपने आप में इतनी मजबूत होती है कि उसे संसार में फैलने के लिए किसी सहारे की जरुरत नहीं होती l अच्छाई का मार्ग कठिन है इसलिए इसे फैलने में थोड़ा वक्त लगता है l लेकिन बुराई के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बुराई चाहे किसी छोटी सी संस्था में फैले या राष्ट्र में या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैले , यह बिना किसी मजबूत सहारे के नहीं फ़ैल सकती l बुराई की राह बहुत सरल है , एक मजबूत सहारा मिलते ही यह बड़ी तेजी से फैलती है और अपने को सहारा देने वाले को डुबाकर ही दम लेती है l ------ कहते हैं जो कुछ महाभारत में है वही इस धरती पर है l महाभारत के लिए कहा जाता है -- न भूतो न भविष्यति ' l और इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से दुर्योधन उत्तरदायी था l भगवान कृष्ण के समझाने से भी वह नहीं समझा लेकिन दुर्योधन ऐसा क्यों था ? बुराई का एक जीता -जागता , नकारात्मक शक्तियों का पुंज ' शकुनि ' था जो दुर्योधन की माता गांधारी का भाई था , उसने अपनी नकारात्मक शक्तियों के विस्तार के लिए दुर्योधन के माध्यम से धृतराष्ट्र का सहारा लिया l धृतराष्ट्र अंधे होने के साथ मोहान्ध भी थे , दुर्योधन की किसी भी बात को वो इनकार नहीं करते थे l इसी का फायदा शकुनि ने उठाया , वह निरंतर दुर्योधन के मन में पांडवों के विरुद्ध विष के बीज बोता रहा l पांडवों के विरुद्ध जितने भी षड्यंत्र रचे गए , वे सब शकुनि के दिमाग की उपज थे l शकुनि के भीतर जो इतनी नकारात्मकता थी , वह उसकी कुंठा थी , एक बात उसके हृदय में घाव की तरह थी कि उसकी बहन गांधारी का विवाह जिससे हुआ वह अंधे हैं l अपने इस घाव को वह दुर्योधन को युवराज बनाकर धोना चाहता था l कहीं कुंठा , कहीं बदले की भावना नकारात्मक शक्तियों को आमंत्रित कर लेते हैं l शकुनि स्वयं मारा गया , कौरव वंश समाप्त हो गया l हमारे महाकाव्य हमें जीना सिखाते हैं , यदि हमारे पास शक्ति है , वैभव है तो जागरूक रहें , बुराई को पनाह न दें l
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