' अहंकार सारी अच्छाइयों के द्वार बंद कर देता है l ' संसार में जितने भी उत्पात हुए , उन सब के मूल में 'अहंकार ' ही है l इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि अहंकारी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझता है और जब ऐसे ही विचार के , स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने वाले लोगों का एक बड़ा और मजबूत संगठन तैयार हो जाता है तो उस संगठित अहंकार के पास अनेक दोष स्वयं खिंचे चले आते हैं l संसार में जितने भी बड़े - बड़े नरसंहार हुए , युद्ध हुए , दंगे , उत्पीड़न इन सबके मूल में एक ही बात है कि एक पक्ष ने स्वयं को श्रेष्ठ और धरती का मूल्यवान प्राणी समझा और दूसरे पक्ष को हीन मानकर धरती से मिटा देना चाहा l युग के अनुरूप साधन बदलते गए लेकिन मानसिकता आज भी वही है l संसार में शांति तभी होगी जब मनुष्य इस सत्य को समझेगा कि इस धरती पर जीने का हक सबको है l हम सब एक माला के मोती हैं l ' इस सत्य को भूलकर जब मनुष्य स्वयं को ' विधाता ' समझने लगता है तब हाहाकार मचना स्वाभाविक है l
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