पारसियों के इतिहास में नौशेरवाँ एक बहुत प्रसिद्ध और न्यायशील बादशाह हुआ l एक बार रोम के बादशाह का राजदूत नौशेरवाँ की राजधानी में आया l वह महल की एक खिड़की के पास खड़ा होकर नीचे सुन्दर उपवन को देख रहा था l उसकी दृष्टि वहां कोने में बनी हुई गन्दी झोंपड़ी पर गई l उसे बड़ा आश्चर्य हुआ l उसने पास खड़े एक पारसी सरदार से इसका कारण पूछा l उस सरदार ने बताया कि जिस समय नौशेरवाँ इस महल को बनवाने लगा तो सब जमीन तो ठीक हो गई पर एक कोने में गरीब बुढ़िया की झोंपड़ी आ गई l जब राज्य कर्मचारियों के कहने से बुढ़िया ने झोंपड़ी खाली नहीं की तो स्वयं नौशेरवाँ ने जाकर उससे कहा कि बगीचे बनने के लिए इस स्थान की आवश्यकता है , तू इसकी जितनी कीमत चाहे लेकर इसे बेच दे l पर जब वह बुढ़िया राजी नहीं हुई तो उससे कहा गया कि इस झोंपड़ी के बजाय यहाँ एक सुन्दर मकान बना दिया जाये l इस पर बुढ़िया ने कहा कि यह झोंपड़ी मेरे परिवार वालों के स्मृति चिन्ह की तरह है , मैं किसी प्रकार इसका नष्ट किया जाना सहन नहीं कर सकती l तब नौशेरवाँ ने कहा कि चाहे मेरा महल अधूरा रह जाये , मैं जबर्दस्ती किसी की चीज पर कब्जा नहीं करूँगा l इसलिए इस झोंपड़ी को ज्यों का त्यों रहने दिया l रोम का राजदूत यह सुनकर बड़ा प्रभावित हुआ और कहने लगा कि तब तो इस झोंपड़ी के रहने से महल की सुंदरता घटने के बजाय बढ़ गई l महल तो कुछ वर्षों में पुराना और खंडहर हो जायेगा , पर यह बुढ़िया की झोंपड़ी की कथा तो सदैव लोगों को सत्य और न्याय पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी l
No comments:
Post a Comment