एंटन चेखव का जन्म रूस में हुआ था , वे उन्नीसवीं शताब्दी के उन महान साहित्यकारों में से हैं जिनकी रचनाएँ समाज पर अपना प्रभाव डाल सकीं और अब वर्तमान में भी वे उतनी ही जीवंत बनी हुई हैं l उनका एक नाटक है --' वार्ड नं. छः ' l बुद्धिजीवी वर्ग की अकर्मण्यता पर तीव्र प्रहार करने वाला यह नाटक जब लेनिन ने देखा तो वे इतने व्यग्र हो उठे कि अपने स्थान पर बैठ न सके l वार्ड नं. छः '----- एक पागलखाने की पृष्ठभूमि पर लिखा गया नाटक है l इस नाटक का नायक डॉ. रैगिन पागलों के अस्पताल का सुपरिंटेंडेंट होता है l डॉ. बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है l उसकी सबसे बड़ी आकांक्षा है ---- अस्पताल में सुधार की l लेकिन अनुकूल वातावरण के अभाव में वह कुछ नहीं कर पाता और निराश होकर बैठ जाता है l सुधार की तीव्र आकांक्षा है ---- परन्तु प्रतिकूलताओं से लड़ने का जरा भी साहस नहीं है l प्रतिकूलताओं से लड़ने में अक्षम होने के कारण वह यह सोचकर मन को समझा लेता है कि ----- मैं तो अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी से कर रहा हूँ l जो कुछ हो रहा है उसके लिए मैं तनिक भी दोषी नहीं हूँ l अस्पताल की व्यवस्था में वह कोई सुधार नहीं कर पाता , इसका परिणाम यह हुआ कि पागलखाने के रसोइये तक उसकी अवज्ञा करने लगे l अव्यवस्था इतनी बढ़ गई कि एक दिन वहां का जमादार अस्पताल का संरक्षक बन बैठा l जमादार रोगियों और कर्मचारियों से दुर्व्यवहार करता और उन्हें मारता - पीटता था l जब रोगी और कर्मचारी शिकायत लेकर डॉ. रैगिन के पास जाते तो वह उन्हें सैद्धांतिक उपदेश देने लगता और कहता --- ' सहन शक्ति बढाकर सुखी रहा जा सकता है l ' पीड़ित और प्रताड़ित कर्मचारी व रोगी इस उपदेश को मानने से इनकार करते थे l कोरे उपदेशों से कोई कैसे सुखी हो सकता है l इस नाटक में डॉ. रैगिन की निष्क्रियता तथा उदासीनता और कर्मचारियों द्वारा हिंसा और अत्याचार के विरुद्ध कठोर संघर्ष तथा स्वाभिमान पूर्ण प्रतिरोध की भावना स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती है l यह विवाद बढ़ता ही चला जाता है और एक दिन ऐसा आता है कि डॉ. रैगिन को पागल और विक्षिप्त करार देकर उसी पागलखाने के वार्ड नं. छः में भर्ती करा दिया जाता है
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