16 June 2021

WISDOM ----------

  भर्तृहरि   ने  वैराग्य  शतक  में  लिखा  है  ----- तृष्णा  न   जीर्णा   वयमेव   जीर्णा : l  भोगा  न  भुक्ता    वयमेव  भुक्ता:  "  अर्थात    तृष्णा  बूढ़ी   नहीं  होती  ,  हम  ही  बूढ़े  होते  हैं  l   भोग  नहीं   भोगे  जाते   ,  हम  ही  भोग  लिए  जाते  हैं   l  "  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- शरीर  ढलने  के  साथ  इन्द्रियाँ   भी  शिथिल     हो  जाती  हैं    लेकिन कामना  और  वासना  समाप्त  नहीं    होतीं  ,  कल्पनाएं - मनोभाव  उसी  दिशा  में  दौड़  लगाते   हैं   और    मनुष्य   पतन  को  प्राप्त  होता  है   l 

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