पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " वास्तविकता बहुत देर तक छिपाये नहीं रखी जा सकती l व्यक्तित्व में इतने अधिक छिद्र होते हैं कि उनमें होकर गंध दूसरों तक पहुँच ही जाती है l इसलिए कमजोरियों पर गंदगी का आवरण न डालकर उनके निष्कासन के , स्वच्छता के प्रयासों में निरत रहना चाहिए l " एक कहानी है ----- एक दिन एक साहूकार को शक हुआ , उसके खजाने में कहीं खोटे सिक्के तो नहीं आ गए ? यह जाँचने के लिए उसने सब सिक्के एक जगह इकट्ठे किए और जांच - पड़ताल शुरू की l अच्छे सिक्के तिजोरी में और खराब सिक्के एक तरफ पटके जाने लगे , तो खोटे सिक्के घबराये l उन्होंने परस्पर विचार किया ---- " भाई ! अब तो अपने बुरे दिन आ गए , यह साहूकार अवश्य हम लोगों को छाँट - बीनकर तुड़वा डालेगा , कोई युक्ति निकालनी चाहिए , जिससे इसकी नजर से बचकर तिजोरी में चले जाएँ l " एक खोटा सिक्का बड़ा चालाक था l उसने कहा ---- " भाइयों ! हम लोग यदि जोर से चमकने लगे , तो यह साहूकार पहचान नहीं पायेगा और अपना काम बन जायेगा l " बात सबको पसंद आई l सब खोटे सिक्के बनावटी चमकने लगे और सेठ की तिजोरी में पहुँचने लगे l खोते सिक्कों को अपनी चालाकी पर बड़ा अभिमान हुआ l गिनते - गिनते एक सिक्का जमीन पर गिर पड़ा l नीचे पत्थर पड़ा था l सिक्का उसी से टकराया l साहूकार चौंका -- हैं , ये क्या , चमक तो अच्छी है पर आवाज कैसी थोथी है l उसे शंका हो गई l दुबारा उसने सब सिक्के निकाले और पटक - पटक कर उनकी जांच शुरू की l फिर क्या था , असली सिक्के एक तरफ और नकली सिक्के एक तरफ l खोटों की दुर्दशा देखकर एक नन्हा सा असली सिक्का हँसा और बोला ----- " मेरे प्यारे खोटे सिक्कों ! दिखावट और बनावट थोड़े समय चल सकती है , खोटाई अंतत: इसी तरह प्रकट हो जाती है l कोई भी मनुष्य अपनी कमजोरी नहीं छिपा सकता l "
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