खलील जिब्रान एक ख्याति प्राप्त विद्वान् थे , उन्होंने अपनी कथाओं के माध्यम से जीवन दर्शन संबंधी सूत्र और नैतिक सीख दी l उनकी एक कथा है ------ वे लिखते हैं ------ ' मैं एक सपना देख रहा था l सपने में एक भयानक भूत ने मुझे पकड़ लिया और मेरा नाम पूछा , मैंने बताया ' अब्दुल्ला ' l भूत बोला --- इसका अर्थ होता है --ईश्वर का दास ' लेकिन तुम अपने कार्य और चेहरे से ऐसे नहीं लगते हो l भूत कहने लगा --- तुम्हारी बिरादरी के लोगों ने मिलकर ईश्वर की नाक में दम कर रखी है l तुम्ही लोगों की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए ईश्वर ने मुझे नियुक्त किया है l तुम लोग धर्म की बातें कर के अपनी चमड़ी बचाते हो और उन कामों को करने में लगे रहते हो जिनकी खुदा ने मनाही की है l धर्म प्रवक्ताओं की इस क्रिया पद्धति से खुदा बहुत दुखी व नाराज है l ' सपने में ही उन्होंने भूत से कहा --- मैं ऐसी गलती नहीं करूँगा , मेरे लिए कुछ सेवा हो तो बताएं और मुझे जाने दें l ' भूत ने हँसते हुए उन्हें एक फावड़ा थमा दिया और कहा ---- " फुरसत के समय तुम कब्रें खोदते रहना l इस दुनिया में चलते - फिरते प्रेत बहुत हैं l तुम उन्ही को दमन करना l खुदा ने तुम्हारे लिए यही जिम्मेदारी सौंपी है l " 'जिन्दा प्रेत ? ' भूत ने कहा ----- " जो दूसरों का दर्द नहीं समझ सकते , जिन्हे आपाधापी के अलावा और कुछ नहीं सूझता , जिनके पास दूसरों को धोखा देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना ही एकमात्र धंधा है , वे जिन्दा भूत नहीं तो और क्या हैं ? ऐसे व्यक्ति धरती पर बोझ हैं , समाज के लिए सिरदर्द हैं , जीवित रहते हुए भी मृतक के समान हैं l उन्हें दफन नहीं करोगे , तो इस दुनिया में जिन्दों को रहने के लिए जगह ही कहाँ बचेगी ? " खलील जिब्रान अपने मित्र को सपना सुनाते और कहते हैं कि यह सपना मुझे बार - बार आता है l मैं कब्र खोदता हूँ और अपने संकीर्ण विचारों को उसमे गहरे गाड़ देता हूँ l सोचता हूँ यह सपना औरों को भी समझ में आ जाये तो खुदा को हैरान न होना पड़े , जिन्दा प्रेत कहीं नजर न आएं , सारा संसार सही अर्थों में मनुष्यों से घिरा सुख - समुन्नति की ओर बढ़ता दिखाई देने लगे l
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