पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " जाल में फंसने वाले पक्षियों की ऐसी दुर्गति होती है कि देखते बनती है l दूर कौन उड़कर जाये , कौन परिश्रम पूर्वक दाना चुगे l वे तो दाना ढूंढ़ने की तुलना में जाल पर बिखरे दानों को एक सौभाग्य जैसा मानते हैं और उससे लाभ उठाने में चूकने की बात नहीं सोचते l उन्हें यह सोचने की फुरसत नहीं होती कि लाभ उठाते समय उसके पीछे कोई दूरगामी संकट तो नहीं छिपा है , उसे भी देखने की आवश्यकता है l हर लोभी अधीर - आतुर होता है और तात्कालिक लाभ के कुछ एक दाने चुग लेने के बाद , उस पक्षी की तरह बेमौत मरता है , जिसे सामने बिखरे आकर्षण के अतिरिक्त अन्य कोई बात सूझती ही नहीं l "
No comments:
Post a Comment