महात्मा रामानुजाचार्य अपनी शारीरिक दुर्बलता के कारण नदी में स्नान करने जाते समय लोगों का सहारा लेकर जाया करते थे l जाते समय वे ब्राह्मण के कंधे का सहारा लेते थे और आते समय शूद्र के कंधे पर हाथ रखकर आते थे l लोगों ने आश्चर्य पूर्वक पूछा --- " भगवन ! शूद्र के स्पर्श से तो आप अपवित्र हो जाते हैं , फिर स्नान का महत्त्व क्या रहा ? " आचार्य जी ने कहा ----- " स्नान से मेरी देह मात्र शुद्ध होती है l मन का मैल तो अहंकार है l जब तक मनुष्य में अहंकार शेष है , तब तक उसे मन का मलीन ही कहा जाता है l मैं शूद्र का स्पर्श कर के अपने मन की मलीनता स्वच्छ करता हूँ l मैं किसी से बढ़ा नहीं , सब मुझसे ही बड़े हैं , शूद्र भी मुझसे श्रेष्ठ हैं , इसी भावना को स्थिर करने के लिए मैं शूद्र का सहारा लिया करता हूँ l शरीर ही नहीं , मन को भी पवित्र रखने की व्यवस्था करनी चाहिए l
No comments:
Post a Comment