27 June 2021

WISDOM ------

   महात्मा  रामानुजाचार्य  अपनी  शारीरिक  दुर्बलता  के  कारण  नदी  में  स्नान  करने  जाते  समय  लोगों  का  सहारा  लेकर  जाया  करते  थे  l   जाते  समय  वे  ब्राह्मण  के  कंधे  का  सहारा  लेते  थे     और  आते  समय  शूद्र  के  कंधे  पर  हाथ  रखकर   आते  थे   l   लोगों  ने  आश्चर्य  पूर्वक  पूछा  --- " भगवन  !  शूद्र  के  स्पर्श  से   तो  आप  अपवित्र  हो  जाते  हैं  ,  फिर  स्नान  का  महत्त्व  क्या  रहा  ? "     आचार्य  जी  ने  कहा  ----- "  स्नान  से    मेरी  देह  मात्र  शुद्ध  होती  है   l   मन  का  मैल   तो  अहंकार  है  l   जब  तक  मनुष्य  में  अहंकार  शेष  है  ,  तब  तक  उसे  मन  का  मलीन   ही   कहा  जाता  है  l   मैं  शूद्र  का  स्पर्श  कर  के  अपने  मन  की  मलीनता   स्वच्छ  करता  हूँ  l  मैं  किसी  से  बढ़ा  नहीं  ,  सब  मुझसे  ही  बड़े  हैं  ,  शूद्र  भी  मुझसे  श्रेष्ठ  हैं  ,  इसी  भावना  को   स्थिर  करने  के  लिए   मैं  शूद्र  का  सहारा   लिया  करता  हूँ   l   शरीर  ही  नहीं ,  मन  को  भी   पवित्र  रखने  की  व्यवस्था  करनी  चाहिए   l 

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