बात उन दिनों की है जब बड़े - बड़े नेता अंग्रेजी का तथा नागरी - लिपि में फ़ारसी और उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी का समर्थन कर रहे थे तब पत्रकारिता के क्षेत्र में महान परम्पराओं के जनक बाबूराव विष्णु पराड़कर हिन्दी के प्रचार - प्रसार के लिए अथक प्रयास कर रहे थे l इसी सन्दर्भ में एक सभा में भाषण देते हुए उन्होंने कहा ---- " सत्य के लिए वे बड़े - से - बड़े व्यक्ति का भी विरोध अवश्य करेंगे l " तब सभा में से एक व्यक्ति ने उठकर पूछा ---- " राजनीति में आप जिन नेताओं के अनुयायी हैं वे स्वयं ही हिंदुस्तानी और अंग्रेजी की वकालत करते हैं , तो क्या आप उनका भी विरोध करने को तैयार हैं ? " तब पराड़कर जी ने एक पौराणिक दृष्टांत देते हुए उक्त बात कही थी l वह दृष्टांत था ---- जब परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को यह ज्ञात हुआ कि उनके पिता की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से हुई है तो उन्होंने सम्पूर्ण पृथ्वी को साँपों से रहित कर देने के लिए नाग - यज्ञ करने का संकल्प किया l यज्ञ शुरू हुआ l जैसे - जैसे आहुतियाँ दी जातीं वैसे - वैसे मन्त्र की शक्ति से दूर - दूर से सांप खिंचकर आते और यज्ञ की अग्नि में गिरकर भस्म होने लगे l तक्षक नाग भागकर देवराज इंद्र की शरण में गया और उनके सिंहासन के नीचे लिपटकर छिप गया l तक्षक नाग की आहुति के लिए मन्त्र जपने से तक्षक इंद्र के सिंहासन समेत खिंचा चला आने लगा l तब जन्मेजय ने इंद्र से उठने के लिए बार - बार कहा परन्तु इंद्र टस से मस नहीं हुए , शरणागत का वचन दे चुके थे l तब जन्मेजय ने यह विचारकर कि अनाचारी को प्रश्रय देने वाले बड़े लोग भी अक्षम्य है , उन्होंने सुरपति की परवाह छोड़ी और मन्त्र पढ़ा ---- ' स इन्द्राय तक्षकाय स्वाहा ' पराड़कर जी ने कहा --- इसी तरह भले ही कोई कितना भी गणमान्य क्यों न हो , हम हिंदी विरोधी का विरोध अवश्य करेंगे क्रांतिकारियों ने जिस आदर्श के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी , देश और सत्ताधीशों को उन आदर्शों से हटते देख वे बड़े क्षुब्ध रहने लगे थे l पत्रकारिता के लिए मार्गदर्शन हेतु जब लोग उनके पास आते थे तो वे कहते थे ----- ' पत्रकार बनकर मैंने कुछ नहीं पाया है l मेरी आत्मा कराह उठती है l "
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