महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के जीवन का प्रसंग है ---- उन्हें ब्रिटिश सम्राट ने ' नाइट ' अथवा ' सर ' की उपाधि से सम्मानित किया था l वे बहुत स्वाभिमानी थे और कहते थे कि अन्याय के सम्मुख सिर झुकना कायरता है l जब 'जलियाँवाला बाग ' का हत्याकांड हुआ था , तब उन्होंने वाइसराय लार्ड चेम्सफोर्ड को एक पत्र लिखा था , जिसमें लिखा था ---- ' अभागी भारतीय जनता को इस समय जो दंड दिया गया है उसका उदाहरण किसी सभ्य सरकार के इतिहास में नहीं मिलता l पर हमारे शासक इस कृत्य के लिए अपने को शाबाशी दे रहे हैं कि उन्होंने ' अच्छा सबक ' सिखाया l ------ समय आ गया है कि जब सरकार द्वारा प्रदत्त ' सम्मान के पट्टे ' राष्ट्रिय अपमान के साथ मेल नहीं खा सकते l वे हमारी निर्लज्जता को और चमका देते हैं l अत: मैं विवश होकर सदर प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे सम्राट की दी गई ' नाइट ' की उपाधि से मुक्त कर दें l ' महाकवि ने यह दिखा दिया कि जहाँ मानवीयता और राष्ट्रीयता का प्रश्न उपस्थित हो , वहां प्रत्येक क्षेत्र के व्यक्ति को आगे बढ़कर उसके विरोध में अपना दायित्व निभाना चाहिए l अपनी वृद्धावस्था और शांत प्रकृति के कारण अंग्रेजों के विरुद्ध उग्र आंदोलन में वे पूरी तरह भाग नहीं ले सके तो भी उन्होंने इस पदवी को ठुकरा कर और दंड के लिए प्रस्तुत होकर अपना असंतोष अच्छी तरह प्रकट कर दिया l
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