एक कुष्ठी भिक्षा मांग रहा था l उधर से जो भी निकलता , कुष्ठी अपना हाथ फैलाकर कहता , जो दे उसका भी भला , जो न दे उसका भी भला l एक युवक ने एक सिक्का उसके हाथ पर डालते हुए पूछा ---- क्यों भाई , तुम्हारा पूरा शरीर गला जा रहा है l हाथ और पैर की उँगलियाँ तक अब ऐसी न रहीं कि कुछ काम कर सको l फिर इस कष्ट का जीवन जीने से क्या लाभ ? यह तो जीवित अवस्था में लाश ढोने जैसी स्थिति है l कुष्ठी ने कहा ----- ' मित्र ! तुम बात तो ठीक कहते हो और कभी - कभी मेरे मन में भी इस प्रकार का प्रश्न उठता है , पर मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर मुझे इसलिए जीवित रखे हुए है कि लोग कम से कम मुझे देखकर यह समझ सकें कि मूर्ख , इस संसार में कभी तू भी मेरे जैसा हो सकता है , अत: इस संसार में काया की सुंदरता का घमंड करने से कोई लाभ नहीं है l
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