एक लघु कथा है ----- रास्ते से जौहरी गुजरा l उसने देखा की एक कुम्हार गधे के गले में हीरा बाँधकर चला जा रहा है , चकित होकर जौहरी ने कुम्हार से पूछा ---- " कितने पैसे लेगा इस पत्थर के ? " कुम्हार ने कहा --- " एक रुपया l ' जौहरी बोला --- ' आठ आने लेगा l ' कुम्हार ने कहा --- ' चलो बारह आने सही l ' जौहरी का लोभ जागा , उसने सोचा -- मूर्ख हीरे को पत्थर समझ कर बेच रहा है l अभी लौटेगा तो आठ आने में दे जायेगा l किन्तु किसी दूसरे ने वह हीरा पूरे एक रूपये में खरीद लिया l जौहरी को सदमा बैठ गया , कुम्हार से बोला ----- ' मूर्ख , तू कोरा गधा ही निकला l लाखों का हीरा कौड़ियों में बेच दिया l ' कुम्हार बोला ---- ' यदि मैं गधा न होता तो क्या हीरा गधे के गले में बांधता , किन्तु आपको क्या कहा जाये ? जब आपको पता था कि हीरा लाखों का है , फिर भी कौड़ियों में दाम चुकाने में कोताही बरतते रहे ? ' ------- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- हम में से कितने ही व्यक्ति कुम्हार और जौहरी की तरह हैं , कुछ तो अनजाने में ही इस हीरे की भांति बहुमूल्य को गँवा देते हैं आओर कुछ जानते - समझते हुए भी उसे बरबाद होते देखते रहते हैं l '
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