हमेशा ख़तरा अपनों से होता है , अपनों के विश्वासघात के कारण ही चाहे परिवार हो समाज हो अथवा राष्ट्र हो , उस पर मुसीबत आती है l जयचंद , मीरजाफर जैसे अपने राष्ट्र से विश्वासघात करने वाले भी अनेक हुए जिनके कारण राष्ट्र पर मुसीबतें आईं l इस सत्य को समझाने वाली एक कथा है ------ कुछ लकड़हारे लकड़ी काटने के लिए जंगल में घूम रहे थे l वृक्षों का निरीक्षण कर रहे थे l वृक्ष दुःखी हो गए l उनने एक पुराने वटवृक्ष से कहा ---- " पितामह ! अब हमारा क्या होगा ? काट डाला जायेगा l " वटवृक्ष ने कहा ---- " तुम चिंता मत करो l यह हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते l हम इतने मजबूत हैं की ये हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते l " कुछ दिन बाद उनके तम्बू लग गए एवं लोहे की कुल्हाड़ियाँ आ गईं l फिर वे चिंतित हो गए , उन्होंने वयोवृद्ध वृक्ष से पूछा -- अब क्या होगा ? ' बटवृक्ष ने कहा ---- " तब तक कुछ नहीं होगा , जब तक हम में से कोई इनका साथ नहीं देगा , ये हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते l " कुछ ही दिनों बाद पड़ोस के जंगल से पेड़ काटकर उनके हत्थे कुल्हाड़ियों में लग गए , उनकी धार तीखी की जाने लगी l वटवृक्ष बोला ---- " अब तो ब्रह्मा भी आ जाएँ तो हमें बचाया नहीं जा सकता l " वृक्षों ने पूछा ---- " क्यों पितामह ? " वटवृक्ष बोला ----- " पहले केवल लकड़हारे और कुल्हाड़ी थीं , किन्तु अब हमारे ही कुल का पड़ोस के जंगल काष्ठ कुल्हाड़ी का बेंट बनकर हमारे विनाश का सरंजाम जुटा रहा है l हमेशा खतरा अपनों से ही होता है l इस विश्वासघात के कारण ही हमारा सर्वनाश होने जा रहा है l " कुछ दिनों बाद जंगल पूरी तरह काट दिया गया l
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