स्वराज्य आंदोलन का जब शंख बजा तब लाल बहादुर शास्त्री जी भी गाँधी जी के संपर्क में आये l गाँधी जी शास्त्री जी की सिद्धांतनिष्ठा , आदर्शवादिता और लोकसेवा की भावना से बहुत प्रभावित हुए l एक दिन उन्होंने शास्त्री जी को बुलाकर कहा ---- " देखो लालबहादुर , तुम में लोकसेवा की उद्दाम भावना है l परन्तु इस मार्ग पर धन सम्पति एक ऐसी बाधा है जिसकी चमक से चौंधिया कर आदमी लोकसेवा की बात भूल जाता है और उसे परिग्रह ही सूझता है l इसलिए लोकसेवकों को अपरिग्रह का व्रत लेना चाहिए l " शास्त्री जी ने तत्काल प्रतिज्ञा की कि ---- " मैं गृह व सम्पति अर्जित नहीं करूँगा तथा ईश्वर पर दृढ़ आस्था रखते हुए जीवन बीमा भी नहीं कराऊंगा l " इस व्रत का शास्त्री जी ने जीवन भर पालन किया l एक बार जब शास्त्री जी इलाहबाद से बाहर न गए थे तब उनके लिए उनके एक मित्र ने कमिश्नर से विशेष छूट मांग ली और दो प्लाट खरीद लिए , एक उनके लिए व एक अपने लिए l शास्त्री जी जब वापस आये और उन्हें इस बात का पता चला तो उन्हें बहुत दुःख हुआ और उन्होंने अपने प्लाट के साथ उन मित्र का प्लाट भी वापस करा कर ही चैन लिया l इस बात की ट्रस्टियों ने बहुत प्रशंसा की तो उन्होंने कहा ---- " मैंने कोई ऐसा आदर्श का काम नहीं किया l मैंने तो बापू को जो वचन दिया था उसे ही पूरा किया l
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