10 December 2021

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----" सदुद्देश्य   के  लिए  आक्रोश   जरुरी  है   l  संकीर्ण  मनोवृत्ति   से  उभरा  आक्रोश  ,  स्वार्थ प्रेरित  होता  है   और   ऐसा क्रोध  सदैव  अनिष्टकारी  होता  है  l  लेकिन  ऐसा  आक्रोश  जिसके  पीछे  परमार्थ  हो  ,  उसके  सत्परिणाम  सामने  आते  हैं  l   ऐसे  व्यक्तियों  को  मनस्वी  कहा  जाता  है  ,  जो  अन्याय  और  अनाचार  के  सामने  घुटने  नहीं  टेकते  ,  वरन  उनसे  लोहा  लेते  हैं   और  अन्यायी  और  अत्याचारी  को  भी   सही  मार्ग  पर   चलने  के  लिए  प्रेरित  करते  हैं   l  "  इस  संदर्भ   में  एक  प्रसंग  है ------       तमिलनाडु   के  कंदकुरि  वीरेश  लिंगम   जब  स्कूली  छात्र  थे   l   वे  जिस  विद्दालय  में  अध्ययन  कर  रहे  थे  ,  उसके  हेडमास्टर  को  भाषा  का  समुचित  ज्ञान  नहीं  था  l   यद्द्पि  प्रधानाध्यापक  से  उनकी  कोई  व्यक्तिगत  दुश्मनी  नहीं  थी  ,  लेकिन  छात्र  हित    में     कि   सब  छात्रों  को  सही  ज्ञान  व  मार्गदर्शन  मिले ,  उन्होंने  विद्दालय  के  सभी  छात्रों  के  साथ  मिलकर  उच्च  अधिकारी   को  उनकी  शिकायत  लिख  भेजी  कि   उनके , स्थान  पर  योग्य  व  सक्षम  व्यक्ति  को  नियुक्त  किया  जाये  l   हेडमास्टर  को  इस  आवेदन  का  पता  चल  गया  ,  उन्होंने  छात्रों  को  दंडित   किया  और  वीरेश  लिंगम  को  विद्दालय  से  निकाल  देने  की  धमकी  दी   l   लेकिन  उनकी  भावना  निस्स्वार्थ  थी  ,  उन्होंने  प्रतिवेदन  की  कई   प्रतियां   कर  संबंधित   शिक्षा  अधिकारियों   को  भेजी   और  छात्रों  को  विद्दालय  में  न  आने  को  कहा  l   छात्रों  की  हड़ताल  को  देखकर   सरकार  ने  मामले  की  जाँच  के  आदेश  दिए   और  अंतत:  नए   प्रधानाध्यापक  की  नियुक्ति   कर  दी  गई  l    अनौचित्य   के  प्रति  क्रोधित  होने   की  परमार्थ परायण  वृत्ति   ने  ही  उन्हें   आगे  चलकर   एक  मनस्वी  समाज  सुधारक   के  रूप  में  ख्याति  दिलाई   l   सामान्य  लोग  निज  स्वार्थ  के  लिए  क्रोधित  होते  हैं  ,  परन्तु  महापुरुष  मात्र  ऊँचे  उद्देश्यों  की  पूर्ति  के  लिए   आक्रोश  का  परिचय  देते  हैं   l     

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