पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----" सदुद्देश्य के लिए आक्रोश जरुरी है l संकीर्ण मनोवृत्ति से उभरा आक्रोश , स्वार्थ प्रेरित होता है और ऐसा क्रोध सदैव अनिष्टकारी होता है l लेकिन ऐसा आक्रोश जिसके पीछे परमार्थ हो , उसके सत्परिणाम सामने आते हैं l ऐसे व्यक्तियों को मनस्वी कहा जाता है , जो अन्याय और अनाचार के सामने घुटने नहीं टेकते , वरन उनसे लोहा लेते हैं और अन्यायी और अत्याचारी को भी सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं l " इस संदर्भ में एक प्रसंग है ------ तमिलनाडु के कंदकुरि वीरेश लिंगम जब स्कूली छात्र थे l वे जिस विद्दालय में अध्ययन कर रहे थे , उसके हेडमास्टर को भाषा का समुचित ज्ञान नहीं था l यद्द्पि प्रधानाध्यापक से उनकी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी , लेकिन छात्र हित में कि सब छात्रों को सही ज्ञान व मार्गदर्शन मिले , उन्होंने विद्दालय के सभी छात्रों के साथ मिलकर उच्च अधिकारी को उनकी शिकायत लिख भेजी कि उनके , स्थान पर योग्य व सक्षम व्यक्ति को नियुक्त किया जाये l हेडमास्टर को इस आवेदन का पता चल गया , उन्होंने छात्रों को दंडित किया और वीरेश लिंगम को विद्दालय से निकाल देने की धमकी दी l लेकिन उनकी भावना निस्स्वार्थ थी , उन्होंने प्रतिवेदन की कई प्रतियां कर संबंधित शिक्षा अधिकारियों को भेजी और छात्रों को विद्दालय में न आने को कहा l छात्रों की हड़ताल को देखकर सरकार ने मामले की जाँच के आदेश दिए और अंतत: नए प्रधानाध्यापक की नियुक्ति कर दी गई l अनौचित्य के प्रति क्रोधित होने की परमार्थ परायण वृत्ति ने ही उन्हें आगे चलकर एक मनस्वी समाज सुधारक के रूप में ख्याति दिलाई l सामान्य लोग निज स्वार्थ के लिए क्रोधित होते हैं , परन्तु महापुरुष मात्र ऊँचे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आक्रोश का परिचय देते हैं l
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