मनुष्य एक समझदार प्राणी है , लेकिन अपने बहुमूल्य मानव जीवन को लड़ाई - झगड़े , दंगे जैसे नकारात्मक कार्यों में गँवा देता है l यदि कुछ पल शांत होकर बैठें और चिंतन करें तो समझ आएगा कि जाति और धर्म के आधार पर नहीं , बल्कि दूषित मनोवृति के कारण समाज में अशांति होती है l घरेलू हिंसा , , सम्पति के झगड़े , पारिवारिक कलह , विवाद, महिला उत्पीड़न ---- इन सब में किसी अन्य जाति का हस्तक्षेप नहीं होता , लोग आपस में ही लड़ते हैं और तनाव व परेशानियों से घिरे रहते हैं l जब ईर्ष्या - द्वेष , लालच बहुत बढ़ जाता है तब अपनों को ही सताने , नीचा दिखाने के लिए गैरों की मदद लेते हैं l मनुष्य को जागरूक होकर जीवन में प्राथमिकताओं का चयन करना होगा कि सुख - शांति का जीवन जरुरी है या वैर - भाव , अशांति जरुरी है l
No comments:
Post a Comment