मनुष्य जीवन है तो समस्याएं आती - जाती रहती हैं l अधिकांश लोगों का यह स्वभाव ही होती है कि वे अपनी परेशानियों और कष्टों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराते हैं l सांसारिक उलझनें इतनी हैं कि हम अपने भीतर देख ही नहीं पाते कि वास्तव में कमी कहाँ है l चाहें पारिवारिक स्तर पर देखें या विशाल स्तर पर जब कमी अपने में होती है , अपना ही दांव कमजोर होता है तब दूसरे उसका फायदा उठाते हैं l इन सबके मूल में कारण है --- मनुष्य की कमजोरियां -- ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा , लोभ , लालच , कामना , वासना -- इन दुर्गुणों के कारण व्यक्ति विवेक शून्य हो जाता है , उसे अच्छे - बुरे का ज्ञान ही नहीं होता l इन सब से निपटने के लिए हंस जैसी विवेक बुद्धि जरुरी है l अपनी और अपने परिवार की कमियों मको दूर कर के ही बाहरी तत्वों को पराजित कर सकते हैं l
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